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________________ ४ अलबेली आम्रपाली ____ जनता लौकिक आकर्षण से अभिभूत थी। उस समय संत, ऋषि, वैज्ञानिक, तंत्र-मंत्र के ज्ञाता और ज्ञानी जन इधर-उधर विचरण करते थे । कुछेक लोग इन सम्पदाओं के प्रति आकृष्ट थे। उस समय शाक्यपुत्र गौतम भगवान् पार्श्व की छिन्न-भिन्न परम्परा से भिन्न एक नये मार्ग का निरूपण करने लगे थे। कुछ समय के लिए जैन धर्म का प्रकाश मन्द हो गया था। सर्वत्र हिंसा का घोर तांडव हो रहा था। वर्गभेद की दीवारें मजबूत हो चुकी थीं। उस समय श्री वर्धमान नाम के क्षत्रिय युवक ने सर्वत्याग के पथ पर चलने का निश्चय किया। श्री वर्धमान की साधना चल रही थी। कैवल्य-प्राप्ति का समय दूर था। वे साधना में आकण्ठ मग्न थे। फिर भी जनता ने इस युवक में अध्यात्म का तेज देखा और जन-जीवन को आलोक से भरने का सामर्थ्य पाया। मगध देश के महाराज प्रसेनजित ने अपने कुलगुरु के पुत्र वर्षकार और दासपुत्र जीवक को तक्षशिला भेजा था। वर्षकार तक्षशिला में राजनीति-शास्त्र का अध्ययन कर रहा था। वह मात्र बाईस वर्ष का था। अभी उसे तीन वर्ष और गम्भीर अध्ययन करने की आवश्यकता थी। ___ और जीवक तक्षशिला के महान् ज्ञानी आत्रेय का प्रधान शिष्य बन गया। आत्रेय ने जीवक में आयुर्वेद के नूतन अवतार की सम्भावना को साक्षात् देखा। जीवक की उम्र तेईस वर्ष की थी और उसे अभी दो वर्ष तक आयुर्वेद का अध्ययन करना था। वृद्ध प्रसेनजित इन दोनों की प्रतीक्षा कर रहा था। इनके आने से पूर्व ही राजा प्रसेनजित इस चिन्ता से आक्रान्त हो गया था कि मगध के भावी सम्राट के रूप में श्रेणिक बिम्बसार को कैसे सुरक्षित रखा जाए ? उस समय वैशाली का गणनायक सिंह सेनापति था। दो वर्ष पूर्व वैशाली के युवकों में चंचलता उग्र बनी थी। गणतन्त्र के एक सेनानायक 'महानाम' निवृत्त हो गए थे । उनकी पुत्री का नाम था आम्रपाली । वह अत्यन्त रूपवती थी। प्रत्येक लिच्छवी युवक की आंखों में वह रम रही थी। गणनायक सिंह ने यह सम्भावना कर ली थी कि कहीं आम्रपाली के कारण लिच्छवी युवावर्ग एकता को भूलकर परस्पर संघर्ष में न जुट जाएं, लिच्छवियों की तप्त तलवार की तीखी धार परस्पर विष रूप होकर एक-दूसरे के प्राण हरण न कर ले, लिच्छवियों की शौर्य-परम्परा आम्रपाली की रूप ज्वाला में भस्मसात् न हो जाए।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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