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________________ अलबेली आम्रपाली ११.५ आचार्य समझते थे कि कादंबिनी मानवजाति के अभिशाप स्वरूप विषकन्या बन रही है । संसार में ये सारी विडंबनाएं चलती रहती हैं । आश्विन शुक्ला पूर्णिमा आ गई। काबिनी विषकन्या बन चुकी थी विषकन्या बने उसे मात्र एक दिन ही हुआ था | आज रात को आचार्य कादंबिनी को यह बताने वाले थे कि वह क्या बनी है और उसे अब किस प्रकार से सावधान रहना है और आज ही रात को महाराजा और महादेवी आचार्य के प्रयोग की सफलता को देखने आने वाले थे... ... प्रयोग के पूर्ण होते ही कादंबिनी ने आचार्य से कहा - "गुरुदेव ! आपका यह महान् उपकार मैं जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकूंगी, अब मुझे आप राजनीति का अभ्यास कब करायेंगे ?" " पुत्रि ! कल शरद पूर्णिमा है कल मगधेश्वर और महादेवी यहां पधारेंगे... उसी रात को मैं तुझे राजनीति के कुछ गुर बताऊंगा ।" "उसमें कितना समय लगेगा ?" "उसकी तू चिन्ता मत कर। यह आश्रम निवास तुझे अप्रिय तो नहीं लगा ?" "नहीं, गुरुदेव ! स्त्री को पीहर कभी अप्रिय नहीं लगता यह आश्रम तो मेरे पीहर के समान है ।" ... शब्द सुनते ही आचार्य के हृदय पर चोट लगी, पर अब कुछ भी होने वाला नहीं था जो अन्याय होना था, वह हो गया । आचार्य कुछ नहीं बोले । वे मात्र मुसकरा कर रह गये । और पूनम की रात आ गई। गगनमंडल में विचरण करने लगा। होकर शरदोत्सव मना रहे थे । शशांक अपनी संपूर्ण सोलह कलाओं के साथ सभी आश्रमवासी खुले आकाश में एकत्रित और उसी समय मगधेश्वर प्रसेनजित रथ में अपनी महारानी त्रैलोक्य सुन्दरी के साथ आश्रम-द्वार में प्रविष्ट हुए । शिवकेशी ने उनका स्वागत किया और उन्हें गुरु के कक्ष में ले गया। उस समय आचार्य एक आसन पर बैठे थे और कुछ ही दूरी पर कादंबिनी भी बैठी थी । इस प्रयोग के पश्चात् कादंबिनी के शरीर में अनोखा परिवर्तन हुआ था जो कल तक यौवन के प्रवेशद्वार पर खड़ी एक कन्या- सी लग रही थी, वही आज पूर्ण नवयौवना नारी के रूप में दिख रही थी । उसकी काया सुदृढ़ और स्वस्थ बन गयी थी । उसका रंग-रूप खिल उठा था । उसके नयन अत्यधिक वेधक और मादक बन गये थे । उसके उरोज उभर गये थे । इस आकस्मिक परिवर्तन का अनुभव स्वयं कादंबिनी भी कर रही थी और दर्पण में अपनी छवि देखकर आश्चर्य से भर रही थी ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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