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________________ ६६ अलबेली आम्रपाली "नहीं। देवि ! मैं जुए में रस नहीं लेता ।" "अच्छा, मेले का स्वरूप तो भव्य और सुन्दर होगा ?" "लोकदृष्टि से वह भव्य और सुन्दर हो सकता है । मेरी दृष्टि में तो वह भयंकर था । " "भयंकर ?" "हां, राजकुमारी ! जो लिच्छवी जाति समग्र भारत के क्षत्रियों के लिए वीरत्व का प्रतीक है, उसका पतन देखकर मैं अकुला गया। मेले में मुझे उनके वीरत्व का कहीं दर्शन नहीं हुआ। सभी युवक और वृद्ध मदिरा, सुन्दरी और द्यूत को जीवन का वरदान मान रहे हैं, ऐसा लगा । लोंगों की आंखों में विलास और वासना के मेघ उभरते मैंने देखे हैं ।" बीच में ही आम्रपाली बोल उठी- "मैंने सुना है कि मालवा के युवक भी रंगीले होते हैं ? " "वैशालिकों की भांति नहीं ।" बिबिसार ने धीरे से कहा । "कुमारश्री ! जहां वीरता होती है वहां विलास भी होता है ।" "मेरी मान्यता इससे भिन्न है । वीरता और विलास का कोई गठबन्धन नहीं होता । विलास, आनन्द और वासना अपनी सीमा में ही शोभित होते हैं । उसकी स्वच्छंदता स्वतन्त्रता के लिए खतरा पैदा कर देती है। इस मेले में मुझे वैशालिकों की वीरश्री के कहीं दर्शन नहीं हुए।" बिंबिसार ने कहा । बिबिसार ने पास में पड़ी वीणा की ओर देखा । उसके चित्त में इस देवकन्या तुल्य सुन्दरी ने अनेक ऊर्मियां उत्पन्न कर दी थीं। वह तो यही समझता था कि यह सुन्दरी वैशाली के किमी राजघराने की कन्या है । मेला देखने आयी होगी । किसी साथी के साथ शिकार खेलने चल पड़ी होगी । वह साथी इसका प्रेमी हो या भृत्य किन्तु इस नारी के सहवास में अद्भुत मस्ती का अनुभव अवश्य होता है । बिंबिसार धीरे-धीरे इस युवती के प्रति आकर्षित हो रहा था । किन्तु उसे अपनी मर्यादा का पूरा-पूरा ध्यान था । आम्रपाली ने हंसते हुए कहा - " कुमारश्री ! आप नि:सकोच रूप से वीणावादन करें। मुझे भी संगीत के संस्कार माता-पिता से प्राप्त हुए हैं । बाल्य अवस्था से मुझे इसका शौक रहा है।" "मैं धन्य हुआ" कहकर बिंबिसार वीणा वादन के लिए प्रस्तुत हुआ । उसने पूछा - "देवि ! आपको कौन-सा राग अतिप्रिय है ?" आम्रपाली बोली - "श्रीमन् ! मुझे तो सभी राग प्रिय हैं की सुहावनी रात, नीरव एकान्त, शान्त वातावरण, यौवन के किन्तु श्रावण प्रथम स्पर्श से
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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