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________________ हेतु विपाक उदय है। गति, स्थिति और भव के निमित्त से कई कर्मों का अपने आप विपाक उदय हो जाता है। 347. दूसरों के द्वारा उदय में आने वाले विपाक हेतु कौन-से हैं ? उ. (1) पुद्गल हेतुक उदय —— किसी ने पत्थर फेंका, चोट लगी और असात वेदनीय का विपाक उदय हो गया, यह पुद्गल हेतुक विपाक उदय है। (2) किसी ने गाली दी और क्रोध वेदनीय पुद्गलों का उदय हो गया, क्रोध आ गया यह सहेतुक विपाक उदय है। भोजन किया, पचा नहीं अजीर्ण हो गया उससे रोग पैदा हो गया, यह असात वेदनीय का पुद्गल-परिमाण से होने वाला विपाक उदय है । मदिरा पी, उन्माद छा गया - ज्ञानावरणीय कर्म का विपाक उदय हो गया। यह भी पुद्गल परिणमन हेतुक विपाक उदय है। इस प्रकार अनेक हेतुओं से कर्मों का विपाक उदय होता है। अगर ये हेतु नहीं मिलते तो उन कर्मों का विपाक रूप में उदय नहीं होता । 348. कर्म किस रूप में फल देता है ? उ. कर्म की जिस प्रकृति का उदय होता है, उसी प्रकृति के अनुरूप वह फल देता है। 349. जिन स्थानों में प्राणी अपने किये हुए कर्मों का फल भोगते हैं, उन्हें क्या कहते हैं ? उ. दण्डक । 350. क्या बंधे हुए कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता ? उ. कर्म उदय के दो प्रकार हैं- प्रदेश कर्म एवं अनुभाग कर्म । जो प्रदेश कर्म हैं वे नियमतः अवश्य भोगे जाते हैं पर जो अनुभाग कर्म है वो कुछ भोगे जाते कुछ नहीं भी भोगे जाते। जो कर्म बंधते हैं उनका आत्म-प्रदेशों में उदय निश्चित होता है। पर सब कर्मों का विपाक हो, अनुभव हो यह जरूरी नहीं है। हैं 351. कर्म पुद्गल जो जड़ है, अचेतन हैं वे अपने आप फल कैसे देते हैं? उ. जैन दर्शन के अनुसार कर्म परमाणुओं में जीवात्मा के संबंध से एक विशिष्ट परिणमन होता है। पुद्गलों का यह परिणमन-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव, गति, स्थिति, पुद्गल परिमाण आदि उदयानुकूल सामग्री से विपाक प्रदर्शन में समर्थ हो जीवात्मा के संस्कारों को विकृत करता है, उससे उनका फलाभोग होता है। आत्मा अपने किये का फल स्वयं भोगता 80 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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