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________________ 337. तेरहवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों की सत्ता होती है? उ. ज्ञानावरणीय की-5, दर्शनावरण की-4 तथा अन्तराय की-5, कुल इन 14 प्रकृतियों की उदय एवं सत्ता 12वें गुणस्थान तक होने एवं आगे न होने से 85 प्रकृतियों की सत्ता तेरहवें गुणस्थान के अन्तिम समय पर्यंत रहती है। 338. चौदहवें गणस्थान में सत्ता का क्या क्रम है? उ. चौदहवें गुणस्थान के प्रथम समय में 85 प्रकृतियों की सत्ता होती है। चौदहवें गुणस्थान के द्विचरम समय में 72 प्रकृतियों का क्षय होने से 13 प्रकृतियों की संभव सत्ता अन्तिम समय में रहती है। इनका अस्तित्व अन्तिम समय तक ही रहता है उसके बाद आत्मा निष्कर्म होकर सर्वथा मुक्त हो जाती है। (कई आचार्य चौदहवें गुणस्थान में मनुष्यानुपूर्वी की सत्ता नहीं मानते हैं। 339. उदय किसे कहते हैं? उ. अबाधाकाल पूर्ण होने पर जब कर्म शुभ-अशुभ रूप में फल देता है, उसे उदय कहते हैं। 340. उदय से पूर्व कर्म की अवस्थाएं कितने प्रकार की होती हैं? उ. उदय से पूर्व कर्म की अवस्थाएं चार प्रकार की होती हैं1. योग्य—जो कर्म पुद्गल बंध परिणाम के अभिमुख हैं। 2. बध्यमान-जिन कर्म पुद्गलों की बंध क्रिया प्रारम्भ हो चूकी हैं। 3. बद्ध-जिन कर्म पुद्गलों की बंध क्रिया सम्पन्न हो चुकी है। 4. उदीरणावलिका प्राप्त—जो कर्म पुद्गल उदीरणाकरण द्वारा उदीरणावलिका को प्राप्त हैं, लेकिन उदयावलिका को प्राप्त नहीं हुए हैं। 341. उदय के कितने प्रकार हैं? उ. उदय के दो प्रकार हैं—प्रदेशोदय और विपाकोदय। 342. प्रदेशोदय किसे कहते हैं? उ. जो कर्म बिना कोई फल दिये नष्ट हो जाता है, केवल आत्म-प्रदेशों में भोग लिये जाते हैं उसे प्रदेशोदय कहते हैं। प्रदेशोदय से आत्मा को सुख-दुःख की स्पष्ट अनुभूति नहीं होती और न ही सुख-दुःख का स्पष्ट संवेदन। क्लोरोफार्म चेतना से शून्य किये गये शरीर के अवयवों को काट देने पर व्यक्ति को पीड़ा की अनुभूति नहीं होती वैसे ही स्थिति है। प्रदेशोदय सभी कर्मों का होता है पर उसके उदय के समय उनका अनुभव हो ही यह जरूरी नहीं है। 78 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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