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________________ 324. कर्म की उत्तर प्रकृतियों में कौन-कौनसी प्रकृतियां परस्पर विरोधी हैं ? उ. तीन शरीर परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी तीन अंगोपांग दो विहायोग दो गोत्र साता-असाता हास्य- रति शोक- अरति वेद-तीन चार-गति चार-आयु चार त्यापूर्वी पांच जाति छः संहनन छ: संस्थान परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी परस्पर विरोधी त्रसदशक-स्थावरदशक 325. उद्वर्तना किसे कहते हैं ? उ. कर्मस्थिति का दीर्घीकरण और रस का तीव्रीकरण उद्वर्तना है। यह स्थिति एक नये पैसे के कर्जदार को हजारों रुपयों का कर्जदार बनाने जैसी है। 326. अपवर्तना किसे कहते हैं? उ. स्थितिबंध एवं अनुभाग बंध के घटने को अपवर्तना कहते हैं। यह स्थिति हजारों के कर्जदार को एक नये पैसे से मुक्त बनाने जैसी है। उद्वर्तना और अपवर्तना के कारण कोई कर्म देर से फल देता है और कोई शीघ्र । किसी कर्म का भोग तीव्र हो जाता है और किसी का मंद। शुभ परिणामों से अशुभ कर्मों की स्थिति और अनुभाग कम होता है तथा अशुभ परिणामों से शुभ कर्मों का स्थिति एवं अनुभाग कम होता है। 327. सत्ता किसे कहते हैं ? उ. कर्म का बंध होने के बाद उसका फल तुरन्त नहीं मिलता है कुछ समय पश्चात् मिलता है। प्रत्येक कर्म की अपनी एक काल मर्यादा होती है। अमुक-अमुक बंधने वाले कर्म पुद्गल जब तक पूरी तरह से आत्मा से कर्म-दर्शन 75
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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