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________________ क्षेत्र में आनुपूर्वी अपना विपाक दिखाती है, उसे उत्पत्तिस्थान के अभिमुख करती है। 239. भवविपाकी प्रकृति किसे कहते हैं और ये कितनी हैं? उ. परभव में उदय योग्य होने के कारण चार प्रकार की आयुकर्म प्रकृतियां भवविपाकी कही जाती हैं। नरकायु, तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु और देवायु ये चार प्रकृतियां भवविपाकी हैं। 240. जीवविपाकी प्रकृति किसे कहते हैं और ये कितनी हैं? उ. जो प्रकृतियां जीव में ही साक्षात् फल दिखाती हैं, वे जीव विपाकी हैं। 78 प्रकृतियां जीवविपाकी हैं। उनके नाम इस प्रकार हैंज्ञानावरण-5, दर्शनावरण-9, मोहनीय-28, नामकर्म की-27, तीर्थंकर नाम, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, सुभग, सुस्वर, आदेय, यश:कीर्ति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अयश:कीर्ति, उच्छ्वास नाम, एकेन्द्रियादि पांच जाति, नरकादि चार गति, शुभ-अशुभ विहायोगति, दो गोत्र और पांच अन्तराय। 241. ध्रुवबंधिनी प्रकृति किसे कहते हैं और वे कितनी हैं? उ. अपने कारण के होने पर जिस कर्म प्रकृति का बंध अवश्य होता है, उसे ध्रुवबंधिनी प्रकृति कहते हैं। ऐसी प्रकृति अपने बंधविच्छेदपर्यन्त प्रत्येक जीव को प्रतिसमय बंधती है। एक सौ बीस कर्म प्रकृतियों में से 47 प्रकृतियां ध्रुवबंधिनी हैं, जो इस प्रकार हैंज्ञानावरणीय-5, दर्शनावरणीय-9, मोहनीय-19 (मिथ्यात्व, अनन्तानुबंधी चतुष्क, अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क, प्रत्याख्यानावरण चतुष्क, संज्वलन चतुष्क, भय, जुगुप्सा), नामकर्म-9, (वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, अगुरुलघु, निर्माण, उपघात), अन्तराय-पांच। 242. अध्रुवबंधिनी प्रकृति किसे कहते हैं और वे कितनी हैं? उ. बंध के कारणों के होने पर भी जो प्रकृति बंधती भी है और नहीं भी बंधती है, उन्हें अध्रुवबंधिनी प्रकृति कहते हैं। ऐसी प्रकृति अपने बंधविच्छेदपर्यन्त बंधती भी है और नहीं भी बंधती है। ऐसी अध्रुवबंधिनी प्रकृतियां 73 हैं। बंधयोग्य 120 प्रकृतियों में उपरोक्त 47 प्रकृतियों को छोड़कर शेष 73 प्रकृतियां अध्रुवबंधिनी हैं। 243. ध्रुवोदया प्रकृति किसे कहते हैं और वे कितनी हैं? उ. जिस प्रकृति का उदय अविच्छिन्न हो अर्थात् अपने उदयकाल पर्यन्त 52 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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