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________________ 222. कर्म परिणमन से जीव में कितने प्रकार के पारिणामिक भाव उत्पन्न होते हैं? ___ उ. कर्म परिणमन से जीव में दस प्रकार के पारिणामिक भाव उत्पन्न होते हैं। इन्हें जीवाश्रित पारिणामिक भाव कहते हैं। गति, इन्द्रिय, कषाय, लेश्या, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वेद—ये जीवाश्रित पारिणामिक के भेद हैं। 223. उपयोग कौनसे कर्म का क्षायक-क्षायोपशमिक भाव है? . उ. ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म का। 224. प्राण कौनसे कर्म का क्षय-क्षयोपशम भाव है? उ. अन्तराय कर्म का। 225. इन्द्रियां किस कर्म के उदय से मिलती हैं? उ. इन्द्रियों की प्राप्ति में शरीर नाम कर्म का उदय और दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम का युगपत् योग रहता है। 226. कर्म-मुक्ति की साधना में कौनसी गति को श्रेष्ठ माना गया है? उ. मनुष्य गति को। 227. कर्मक्षय करने के साधन कौनसे हैं? उ. कर्मक्षय करने के तीन साधन हैं (1) सम्यक् दर्शन, (2) सम्यक् ज्ञान, (3) सम्यक् चारित्र। 228. प्राणी स्वकृत सुख-दुःख का भोग करता है अथवा परकृत? उ. प्राणी अपने द्वारा कृत सुख-दु:ख का भोग करता है, परकृत का नहीं। दु:ख और सुख आत्मकृत हैं परकृत नहीं, दूसरा तो मात्र निमित्त बन सकता है। 229. मुक्त होते समय जीव की अवस्था ज्ञानमय रहती है या दर्शनमय? उ. ज्ञानमय। 230. कर्म-किल्विष का क्या तात्पर्य है? उ. कर्मों से मलिन अथवा जिनके कर्म मलिन हों, वे कर्म किल्विष कहलाते 231. परावर्तमान प्रकृति किसे कहते हैं, वे कितनी हैं? उ. जो प्रकृतियां दूसरी प्रकृतियों के बंध, उदय अथवा दोनों को रोक कर अपना बंध, उदय अथवा बंधोदय करती हैं वे परावर्तमान प्रकृतियां हैं। परावर्तमान प्रकृतियां 91 हैं। जो निम्न प्रकार हैं कर्म-दर्शन 49
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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