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________________ हैं—सयोगी तथा अयोगी। अयोगी के किसी भी कर्म का बंध नहीं होता। सयोगी चरम के वीतराग अवस्था में एक सातवेदनीय का बंध होता है तथा सरागी अवस्था में चरम के आठ, सात, छ: कर्म का बंध होता है। जो कभी संसार का अन्त करेंगे वे चरम कहलाते हैं। जो अन्तिम चरम शरीरी है उनके सात ही कर्म का बंध हो सकता है। आयु का बंध उस भव में उनके नहीं होता है। 169. क्या चरम शरीरी (भावी सिद्ध) के नरक गति आदि कर्म प्रकृतियां सत्ता में रहती हैं? उ. हां, वर्तमान शरीर में, भव में सिद्धगति को प्राप्त करने वाले मुनियों के भी नरक गति आदि कर्म प्रकृतियां सत्ता में रहती हैं। उनका अनुभव किये बिना वे कभी क्षीण नहीं होतीं। तद्भवसिद्धिक जीव नरक आदि जन्मों के विपाकोदय के रूप में उनका अनुभव नहीं करता किन्तु प्रदेशोदय में उनका अनुभव कर तपस्या से उनको क्षीण कर देता है। 170. साधु के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट कर्म कितने? उ. जघन्य-चार, मध्यम-सात, उत्कृष्ट आठों ही कर्म होते हैं। 171. द्रव्य तीर्थंकर के कर्म कितने तथा भाव तीर्थंकर के कर्म कितने? उ. द्रव्य तीर्थंकर के कर्म आठ या सात होते हैं। भाव तीर्थंकर के कर्म चार अघाति ही हैं। 172. कर्मों की अवगाहना जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट कितनी है? उ. चार घाति कर्म जिस जीव में पाते हैं, उसके अनुरूप उनकी अवगाहना है। चार अघाति कर्म जिस जीव में पाते हैं—जघन्य तो उस जीव के अनुरूप अवगाहना और उत्कृष्ट लोक प्रमाण केवली समुद्घात की अपेक्षा से। 173. एकेन्द्रिय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय के जीवों में कितने कर्म होते हैं? उ. आठ। (मनुष्य के आठ, सात, चार कर्म भी होते हैं) 174. सिद्धों के कितने कर्म होते हैं? उ. एक भी नहीं। 175. वीतराग के कितने कर्म होते हैं? ___उ. 11वें गुणस्थान की अपेक्षा-8 कर्म। 12वें गुणस्थान की अपेक्षा 7 कर्म (मोहनीय कर्म को छोड़कर), 13वें, 14वें गुणस्थान की अपेक्षा-4 कर्म। सिद्धों के कर्म नहीं होता। कर्म-दर्शन 41
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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