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________________ कर्म का बंध किया। वह वापस नीचे के गुणस्थानों में आकर पुनः दूसरे कर्मों को बांधता है यह आगे मोक्ष जायेगा। तब सभी कर्मों का अन्त करेगा अतः यह सादि - सान्त है। * तीसरा विकल्प- अनादि सान्त ! जो भव्य जीव अनादिकाल से तो कर्मों से बंधे हैं, पर आगे मोक्ष जाने वाले हैं उनकी अपेक्षा अनादि सांत है। * चौथा विकल्प — सादि अनन्त ! यह विकल्प नहीं बनता है। किसी जीव ने एक बार दर्शन मोह को उपशान्त कर दिया वह निश्चित रूप से मोक्ष जायेगा ही । अतः सादि अनन्त का विकल्प नहीं बनता । 157. कार्मण शरीर का संबंध आत्मा के साथ अनादिकाल से है। अनादिकाल से सम्बन्धित इस शरीर का अलगाव कैसे होगा ? उ. कार्मण शरीर कर्म वर्गणा के संघात को कहते हैं। कर्म वर्गणा का संबंध अवधिपूर्वक होता है। अवधि समाप्त होते ही वे कर्म वर्गणा आत्मा से पृथक् हो जाती है। स्थिति परिपाक के साथ कर्म वर्गणा छूटती रहती है तथा नई कर्म वर्गणा का बंधन चालू रहता है । प्रवाह रूप में कर्म वर्गणा आत्मा के साथ निरन्तर चलती रहती है। यह प्रवाह जब पूर्णतया रुक जाता है, तब नई कर्म वर्गणा के आगमन का द्वार बंद हो जाता है और पुरानी कर्म वर्गणा आत्मा से अलग हो जाती है। 158. कार्मण शरीर और कर्म एक ही है या दो ? उ. स्थूल रूप में कार्मण शरीर और कर्म एक ही हैं। इस शरीर का उपादान कर्म ही है। सूक्ष्मता में कर्म वर्गणा के संघात को कार्मण शरीर कहते हैं । संघात कुछ और पुद्गल स्कंधों की अपेक्षा रहती है। इसमें वर्गणाओं का वर्गणा के साथ एकीभाव जरूरी होता है। अलग-अलग स्थिति, अनुभाग आदि से प्रत्येक कर्मवर्गणा भिन्न-भिन्न है । यहीं दोनों में अन्तर है। में 159. कर्म और शरीर का संबंध सादि है या अनादि ? उ. प्रवाह रूप से अनादिकालीन कर्म और शरीर में परस्पर हेतु - हेतुमद्भाव है। कर्म से शरीर और शरीर से कर्म उत्पन्न होते हैं। जैसे बीज से अंकुर और अंकुर से बीज पैदा होता है । 160. कार्मण शरीर और बंध एक है या दो ? उ. एक है। कार्मण शरीर स्वयं ही बंध है और बंध ही कार्मण शरीर है । पुण्यपाप कार्मण शरीर की ही प्रक्रिया है। कर्म-दर्शन 39
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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