SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवों ने संतदर्शन से बंधे हए पुण्य का जिक्र किया और कहा—उच्च गोत्र कर्म बंध के कारण अंगभान देवभव के बाद महाविदेह के क्षेत्र में जयभद्र नाम का चक्रवर्ती होगा। इसके जन्म के साथ इसकी देवता सेवा करेंगे। इसकी वाणी में इतना आकर्षण होगा कि जो कुछ कह दिया, उसके पीछे दुनिया लग जायेगी। यह अतिशयधारी पुरुष होगा। जयभद्र के बड़े होने पर उसकी आयुधशाला में चक्ररत्न पैदा होगा। जब वह . विजय-यात्रा पर जायेगा, तो वह विजय-यात्रा सद्भावना यात्रा जैसी बन जायेगी। बत्तीस हजार राजा उसकी आज्ञा में रहेंगे। कोई भी राजा लड़ने नहीं आयेगा। पूरे भूमण्डल पर एकछत्र साम्राज्य स्थापित होगा। चक्रवर्ती जयभद्र का शरीर स्वस्थ रहेगा। यह सदा जवान जैसा ही रहेगा। ये सब पुण्य इसके संतदर्शन से ही बंधे हैं। चक्रवर्ती का पद भोगकर साधुत्व स्वीकार करेगा। संयम ग्रहण करने के बाद उग्र तपस्या और विशुद्ध ध्यान में लीन होगा। अनशनपूर्वक मरकर सातवें देवलोक में महाऋद्धिक देव बनेगा। संतदर्शन से ही इसे उच्च गोत्र का बंध हुआ और पुण्य से यह देव और चक्रवर्ती का पद प्राप्त करेगा। (38) ऐश्वर्यहीनता वासुदेव युगबाहु त्रिखंडाधिपति बनकर शतद्वारा नगरी आये, तब शतद्वारा के नागरिकों ने अपने राजा को मोतियों से बधाया, दीपमाला जलाई, बड़े हर्ष व उल्लास के साथ वासुदेव का प्रवेश करवाया। युगबाहु प्रसन्न था। सोलह हजार देशों पर पूर्ण रूप से आधिपत्य जम चुका था। सभी राजा यह मानने लगे-युगबाहु पुण्य पुत्र है। वासुदेव को एक दिन सूचना मिली-पूर्व दिशा के उपवन में जंघाचरण मन:पर्यवज्ञानी मुनि शक्तिगुप्त पधारे हुए हैं। वासुदेव अपने बड़े भाई बलदेव श्रीमणीबाह के साथ दर्शनार्थ आये। प्रवचन सुना। प्रवचन-विषय था—जो कुछ अच्छा या बुरा व्यक्ति को प्राप्त होता है वह सब कर्मजन्य है, पुण्य की उपलब्धि है—सुविधा, यश और प्रतिष्ठा। पाप की उपलब्धि है—दुविधा, अभाव, अपयश, दीनता।। प्रवचन समाप्ति के बाद वासुदेव युगबाहु ने पूछा-मुनिप्रवर! आज की इस परिषद् में ऐसा कोई व्यक्ति है क्या, जो बहुत उच्च एवं ऐश्वर्यशाली स्थान से कर्मों को बांधकर अभी निम्न श्रेणी में आ गया है या अभाव में दु:ख झेल रहा है। कर्म-दर्शन 287
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy