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________________ व्यंतर जाति ___ ज्ञानभानु अणगार ने आगे कहा—तुम्हारा तीसरा भाई शिवकान्त सरयू की घाटी में चंगन नाम का आदिवासी पुत्र था। कर्मयोग से वह बदशक्ल और मंदबुद्धि वाला था। परिवार इसे वहीं छोड़कर कहीं दूर आजीविका के लिए चल पड़ा। यह अभागा वहीं रोता रहा। घाटी के लोगों ने उसे भीख मांग-मांग कर आजीविका चलाने की सलाह दी। चंगन भीखारी बन गया। घाटी में दर-दर भीख-मांगने के लिए जाता था, फिर भी वह अतृप्त रहता। वर्षा के समय नदी-नालों में पानी आने से उसे दो-दो दिन तक भूखा रहना पड़ता था। इस प्रकार उसके अज्ञान का कष्ट काफी हुआ। अकाम निर्जरा भी होती रही। वहाँ से मरकर यह व्यन्तर देवों में महोरग जाति का देव बना। वहाँ का आयुष्य पूर्णकर यह तुम्हारा तीसरा भाई बना। वैमानिक देव सर्वज्ञ मुनि ने कहा—यह तुम्हारा चौथा भाई मणिकांत पिछले जन्म में वैशाली नगरसेठ का पुत्र ‘कुलपुत्र' था। सेठ के परिवार में यही सबसे बड़ा था। छोटे भाई का जन्म होने से पहले इसे परिवार का बहुत प्यार मिला। बचपन में ही इसे धर्म का योग मिलने से आचार्य गुणभद्र सूरि के पास दीक्षित हो गया। ज्ञान के क्षेत्र में तीव्रता से आगे बढ़ते हुए आगम का अधिकृत वेत्ता बना। साध्वाचार के प्रति पूर्ण जागरूक था। गुरु आज्ञा से सुदूर क्षेत्रों में जाकर धर्म का काफी प्रचार-प्रसार किया। सब प्रकार से योग्य होते हुए भी पदलिप्सा से दूर और अहंकार से अछूता रहा। __ आचार्य ने इसको योग्य समझकर युवाचार्य बना दिया। आचार्य बनने के बाद भी अहंकार से दूर रहा। संघ की सारणा-वारणा करता रहा। इसके आचार्यकाल में धर्म की अच्छी प्रभावना हुई। वहाँ से अनशनपूर्वक समाधिमरण प्राप्त किया और चौथे देवलोक में सामानिक इन्द्र बने। स्वर्गलोक का आयुष्य भोगकर यह सबसे छोटा भाई मणिकान्त बना है। अत: जिन-जिन स्थानों से ये आये हैं वहाँ के दृश्यों को इनकी माता ने अपने स्वप्न में देखे थे। 282 कर्म-दर्शन 12 18020486
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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