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________________ देवी ने पुनः समझाते हुए कहा—राजकुमार! कुछ कर्म तोड़े जा सकते हैं, पर कुछ कर्म ऐसे भी होते हैं, जिन्हें भोगना ही पड़ता है। राजकुमार ने कहा—कुछ भी हो, जगदम्बे! मैं तो संयम ग्रहण करूंगा। आगे जो कुछ घटित होगा उसे देख लूंगा। प्रात: राजकुमार ने आचार्य संयमभद्र के पास संयम स्वीकार किया। ज्ञानार्जन किया। प्रवचन कौशल बन गये। विचरते-विचरते मुनि जयसेन कटंगा नगर में पधारे। एक बार कटंगा नरेश ने एक नैमित्तिक से पूछा था, राजकुमारी प्रियंकरा की शादी कहाँ होगी? प्रत्युत्तर में नैमित्तिक ने कहा—कुछ दिनों बाद मकर संक्रान्ति के प्रथम दिन जयसेन मुनि आयेंगे, वे ही इसके पति होंगे। राजा के पूछने पर उसने मुनि का सारा जीवन भी बता दिया। राजा-राजकुमारी अभी प्रतीक्षा कर रहे थे। मकर संक्रान्ति के प्रथम दिन मुनि जयसेन कटंगा पधारे। राजा को सूचना मिली। राजा ने सर्वप्रथम राजकुमारी को भेजा। प्रवचन सुनकर, मुनिजी के एकान्त में सेवा की और व्यथा सुनायी। शादी का अनुरोध किया तो मुनि ने आनाकानी की। राजकुमारी मुनि के शरीर से लिपट गई और आग्रहपूर्वक कहने लगी-अगर मेरे से शादी नहीं की, तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। मुनि विचलित तो हो गये—पर मुनि वेष त्यागने में हिचकिचा रहे थे। कुलदेवी ने प्रकट होकर कहा-राजकुमार! सोचते क्या हो? मुनि वेष छोड़ना पड़ेगा, अभी तो भोगावली कर्म बाकी है, उसे भोगना पड़ेगा। देवी के कहने से मुनि ने राजकन्या को स्वीकृति दी और मुनिवेष छोड़कर उसके साथ शादी की। शादी के साथ ही राजा ने उसे कटंगा का युवराज भी बना दिया। कटंगा नरेश के कोई लड़का नहीं था, केवल एक राजकन्या थी। युवराज जयसेन कुछ समय बाद राजा जयसेन बन गये। वे एकछत्र निष्कंटक राज्य भोगने लगे। कई वर्षों के बाद आचार्य संयमभद्र के शिष्य इन्द्रियभद्र मुनि विचरते-विचरते कटंगा नगरी पधारे। राजा को सूचना मिली। इन्द्रियभद्र मुनि राजा के गुरुभाई तथा सहपाठी भी थे। अब वे चार ज्ञान के धनी बन गये थे। राजा अपने सहपाठी एवं गुरुभाई मुनि के दर्शनार्थ आया। प्रवचन सुना। त्याग और भोग का विश्लेषण सुनकर विरक्त हुआ। राजा प्रवचन में बैठा-बैठा सोचने लगा-मैं इस भोग कीचड़ में इतने वर्षों तक सड़ता रहा, गंदगी से बचता रहा। यह मेरा सहपाठी अन्तर्मुखी बनकर अन्तर् जगत की यात्रा कर रहा है। अवधि ज्ञान, मन:पर्यवज्ञान जैसी विशिष्ट लब्धियों से युक्त है। मैं इन उपलब्धियों से वंचित रह गया। कर्म-दर्शन 273
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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