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________________ पाप कर्म के बंध में मोह कर्म का उदय क्यों जरूरी है या मोह के उदय बिना पाप कर्म का बंध नहीं होता, यह कैसे ? उ. मोह कर्म का उदय दसवें गुणस्थान तक है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय एवं अन्तराय ये तीनों एकान्त पाप कर्म हैं। इन तीनों का उदय 12 गुणस्थान के अन्तिम समय तक है पर 11वें व 12वें गुणस्थानों में ये बंधते नहीं हैं क्योंकि 11वें गुणस्थान में मोहकर्म की अनुदय अवस्था है तथा 12वें गुणस्थान में मोहकर्म क्षीण हो जाता है। इन दो गुणस्थानों में इन तीन कर्मों का उदय रहते हुए भी मोह का उदय न रहने से इनका बंध नहीं होता । अतः इससे सिद्ध होता है कि मोह के उदय के बिना पाप कर्म का बंध नहीं होता है। 68. 69. पुण्य और पाप की कर्म वर्गणा अलग-अलग है या एक ही है? उ. कर्म वर्गणा के पुद्गल स्कन्ध अलग-अलग नहीं हैं। जिस प्रवृत्ति से कर्म बंधते हैं, वे उसके अनुरूप बंध जाते हैं। शुभ लेश्या, शुभ योग से आकर्षित कर्म वर्गणा शुभ रूप में परिणत हो जाती है। अशुभ लेश्या, अशुभ योग से आकर्षित कर्म वर्गणा अशुभ रूप में परिणत हो जाती है। शुभता और अशुभता हर कर्म वर्गणा में विद्यमान हैं। जिस रूप में कर्म बंधते हैं, उतने समय विशेष के लिए तदनुरूप कर्म वर्गणा शुभ और अशुभ फल देने वाली हो जाती है। 70. पुण्यकर्म और पापकर्म सविपाकी होते हैं अथवा अविपाकी ? उ. पुण्यकर्म और पापकर्म सविपाकी और अविपाकी दोनों तरह के होते हैं। कुछ कर्म सविपाकी होते हैं— जिस रूप में बंधे हैं उसी रूप में भोगे जाते हैं। कुछ कर्म अविपाकी होते हैं— जिन्हें मंदरस अथवा नीरस कर प्रदेशोदय के रूप में भोगा जाता है उनका विपाकोदय नहीं होता । 71. क्या पुण्य और पाप अपना-अपना होता है ? उ. पुण्य और पाप आत्मस्थित हैं, किन्तु बाह्य निमित्तों की अपेक्षा रखते हैं, काल परिपाक से फल देते हैं। अतः पुण्य-पाप का फल स्वतः प्राप्त होता है दूसरों से नहीं । 72. बंध और पुण्य-पाप में क्या अन्तर है ? उ. बंध जीव की बद्धमान अवस्था है जबकि पुण्य-पाप शुभ-अशुभ कर्म की उदीयमान अवस्था है। 24 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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