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________________ पुत्र राजा बने। राजा ने बहुत सूझबूझ से काम लिया। उसने यह घोषणा की—दोनों रानियों के प्रथम पुत्र को बड़ा माना जाएगा, पर युवराज उसी को बनाया जाएगा जो मेरी दृष्टि में योग्य होगा। इस घोषणा से बड़े राजकुमार की माँ बनने की महत्ता समाप्त हो गई। संयोगवश दोनों रानियों के पुत्ररत्न जनमे। राजा ने दोनों का समान रूप से उत्सव मनाया और नाम दिया गया—विजयबाहु और विनयबाहु। दोनों के लालनपालन की समुचित व्यवस्था की। राजा चाहता था—दोनों पुत्रों के प्रति समान वत्सलता बनी रहे और दोनों पुत्रों के मन में इनके प्रति समान श्रद्धा का भाव जगे इसलिये दोनों पुत्रों को दोनों माताएं परस्पर में रखा करती थीं, किन्तु दोनों का मन सशंक रहता था। दोनों अपने पुत्र को ही राज सिंहासन पर बैठा हुआ देखना चाहती थीं। __महारानी विजयवती इस मामले में क्षुद्र मनोवृत्ति वाली थी। एक बार मध्यरात्रि में नींद टूट गई। महारानी का चिन्तन अपने पुत्र पर चला गया और सोचने लगीअभी से कुछ प्रयत्न करूं, जिससे विजयबाहु आगे जाकर राजा बन जाए। इसके लिए विनयबाहु को निष्क्रिय बनाना होगा। अगर वह हर क्षेत्र में सक्रिय रहा, तो कांटे की स्पर्धा हो जाएगी। इसे अभी से मंदबुद्धि वाला बना दिया जाए, जिससे विजयबाहु के राजा बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाए। ___महारानी ने इसकी क्रियान्विति के लिए एक योजना बनाई। अगले दिन विनयबाहु को जो केवल ढाई वर्ष का था, अपनी गोद में लेकर खिलाते हुए अपने कक्ष में ले गई, वहाँ उसे अफीम मिलाकर दूध पिला दिया। फिर चुपचाप उसे उसकी माता की गोद में थमा दिया। आधा घण्टे के बाद बच्चे को नींद आने लगी। महारानी विनयवती ने उसे सुला दिया और स्वयं दूसरे कार्यों में प्रवृत्त हो गई। धायमाता ने जब बच्चे के मुख में झाग देखा तो दंग रह गई और वह जोर से चिल्लाई। उस चिल्लाहट के साथ पूरा राजमहल इकट्ठा हो गया। पुत्र को मूर्छावस्था में देखकर राजा उद्विग्न हो उठा, फिर भी धैर्य से उपचार में लगा। राजकीय वैद्य आए। विभिन्न प्रकार के औषधि उपचारों से बच्चे को बारह घण्टों के बाद विषमुक्त बनाया और क्रमशः मूल स्थिति को राजकुमार ने प्राप्त किया। राजा को रानी विजयवती के इस कुकृत्य का अनुमान लग गया, फिर भी खामोशी के साथ सब कुछ सहन कर चलने लगा। महारानी इस कार्य के बाद प्रायः अस्वस्थ रहने लगी। दोनों राजकुमार विद्यासम्पन्न बने, दोनों की धूमधाम से शादी हुई। शादी के कुछ दिनों बाद ही महारानी विजयवती चल बसी। 248 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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