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________________ 52. पुण्य का बंध किससे होता है? उ. शुभ योग आश्रव से । 53. पुण्य की उत्पत्ति धर्म के साथ ही होती है अथवा स्वतंत्र ? उ. पुण्य की उत्पत्ति धर्म के साथ ही होती है, स्वतंत्र नहीं। इसका कारण है शुभ योग के बिना पुण्य बंध नहीं होता एवं शुभ योग ( शुभ प्रवृत्ति) से निर्जरा धर्म निश्चित है। निर्जरा के साथ पुण्य का बंध होता है। 54. शुभयोग से पुण्य का बंध और निर्जरा दो कार्य होते हैं, दोनों में पहले पुण्य बंध होता है या निर्जरा ? उ. प्रवृत्ति के साथ बंध हो जाता है अतः पुण्य बंध पहले होता है। निर्जरा का समय बाद का है। 55. पुण्य का बंध किस कर्म का उदय है ? उ. पुण्य का बंध शुभ नाम कर्म के उदय से है। 56. नाम कर्म के उदय से पुण्य का बंध होता है। चौदहवें गुणस्थान में नाम कर्म का उदय चलता है, फिर वहाँ कर्म का बंध क्यों नहीं होता ? उ. जहाँ पुण्य का बंध होता है, वहाँ नाम कर्म का उदय अवश्य होता है। जहाँ नाम कर्म का उदय रहता है वहाँ पुण्य का बंध हो ही, यह जरूरी नहीं है। यह एक सार्वभौम तथ्य है कि पुण्य बंध में नाम कर्म की नियमा ( अनिवार्यता ) है और नाम कर्म के उदय में पुण्य बंध की भजना है। चौदहवां गुणस्थान अयोगी है। बिना योग के कर्म बंध होता नहीं, इसलिए उसे अबंधक गुणस्थान माना गया है। 57. पुण्य का बंध किस कर्म के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम से होता है ? उ. वीर्यान्तराय कर्म के क्षय-क्षयोपशम से जीव को शक्ति प्राप्त होती है। नाम कर्म के उदय से वह जीव प्रवृत्ति करता है । चारित्र मोह के उपशम, क्षय, क्षयोपशम से वह प्रवृत्ति शुभ बनती है, उससे कर्मों की निर्जरा होती है और साथ-साथ पुण्य का बंध होता है। 58. पुण्य की पर्याय कितनी हैं ? उ. पुण्य की पर्याय अनन्त हैं। आत्मा के प्रत्येक प्रदेश पर अनन्त - अनन्त कर्म वर्गणाएं चिपकी रहती हैं। जो कर्म वर्गणाएं एक क्षण में आत्म-प्रदेशों से आश्लिष्ट होती हैं, वे अभव्य जीवों से अनन्त गुणा अधिक व सिद्धों के अनन्तवें भाग जितनी होती हैं। इस प्रकार जीव के प्रदेशों के साथ पुण्य के अनन्त प्रदेश बंधे हुए रहते हैं। 22 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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