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________________ 1038. नाम कर्म का अबाधाकाल कितना है? ___उ. जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट दो हजार वर्ष। 1039. नाम कर्म का लक्षण एवं कार्य क्या है? उ. नाम कर्म चित्रकार के समान है। चित्रकार अपनी कल्पना से नये-नये चित्रों का निर्माण करता है वैसे ही नाम कर्म शरीर संस्थान आदि को अनेक रूप देता है। नाम कर्म के उदय से व्यक्ति में सुन्दरता-असुन्दरता के दर्शन होते हैं। जिस प्रकार हरिकेशबल का चाण्डाल कुल में जन्म और बीभत्स शरीर, अष्टावक्र के शरीर की वक्रता एवं सनत्कुमार चक्रवर्ती की सुन्दरता, यह सब नाम कर्म के उदय का ही परिणाम है। 1040. नाम कर्म भोगने के कितने हेतु हैं? उ. नाम कर्म भोगने के अट्ठाईस हेतु हैं * शुभ नाम कर्म के उदय से जीव शारीरिक एवं वाचिक उत्कर्ष पाता है। इसके अनुभाव चौदह हैं—(1) इष्ट शब्द, (2) इष्ट रूप, (3) इष्ट गंध, (4) इष्ट रस, (5) इष्ट स्पर्श, (6) इष्ट गति, (7) इष्ट स्थिति, (8) इष्ट लावण्य, (9) इष्ट यश:कीर्ति, (10) इष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम, (11) इष्ट स्वरता, (12) कान्त स्वरता, (13) प्रिय स्वरता, (14) मनोज्ञ स्वरता। * अशुभ नाम कर्म के उदय से जीव शारीरिक एवं वाचिक अपकर्ष पाता है। इसके अनुभाव चौदह हैं—(1) अनिष्ट शब्द, (2) अनिष्ट रूप, (3) अनिष्ट गंध, (4) अनिष्ट रस, (5) अनिष्ट स्पर्श, (6) अनिष्ट गति, (7) अनिष्ट स्थिति, (8) अनिष्ट लावण्य, (9) अनिष्ट यश:कीर्ति, (10) अनिष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम, (11) अनिष्ट स्वरता, (12) हीन स्वरता, (13) दीन स्वरता, (14) अकान्त स्वरता। 1041. नाम कर्म का बंध कौनसे गुणस्थान तक होता है? उ. पहले से दसवें गुणस्थान तक। 1042. नाम कर्म का उदय कौनसे गुणस्थान में रहता है? __उ. सभी गुणस्थानों में। कम-दर्शन 215
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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