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________________ नाम कर्म 842. नाम कर्म किसे कहते हैं? __उ. 1. जिस कर्म के उदय से जीव को शरीर, जाति, गति, यश, अपयश, संहनन, __ संस्थान, आकृति, प्रकृति आदि प्राप्त होते हैं, उसे नाम कर्म कहते हैं। 2. श्री नेमिचन्द्रजी ने लिखा है—जो कर्म जीवों में गति आदि के भेद उत्पन्न करता है, जो देहादि की भिन्नता का कारण है, तथा जिससे गत्यन्तर जैसे परिणमन होते हैं वह नाम कर्म है। 843. नाम कर्म के कितने प्रकार हैं? उ. नाम कर्म के दो प्रकार हैं—शुभ नाम कर्म और अशुभ नाम कर्म।' 844. शुभ नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म शुभ नाम से परिणत होते हैं तथा विपाक अवस्था में शुभ नाम रूप से उदय में आते हैं वे शुभ नाम कर्म कहलाते हैं। शुभ नाम-कर्म पुण्य प्रकृति है। 845. अशुभ नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म अशुभ नाम से परिणत होते हैं तथा विपाक अवस्था में अशुभ नाम रूप से उदय में आते हैं वे अशुभ नाम कर्म कहलाते हैं। अशुभ नाम कर्म पाप प्रकृति हैं। 846. शुभाशुभ नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियां कितनी हैं? उ. शुभ और अशुभ-इन दोनों की मूल प्रकृति 42 बतायी गई हैं। अपेक्षा भेद से 67, 93, 103 प्रकृतियों का भी उल्लेख मिलता है। 847. नाम कर्म के बयालीस भेद कौन-कौनसे हैं? ___ उ. 1. चौदह पिण्ड प्रकृतियां 2. आठ प्रत्येक प्रकृतियां 3. त्रस दशक 4. स्थावर दशक 848. तिरानवें व एक सौ तीन प्रकृतियां कौनसी हैं? उ. मूल प्रकृतियां 42 हैं इसके तिरानवें भेद हो जाते हैं उसका क्रम इस प्रकार चौदह पिण्ड प्रकृति के 65 भेद-गति 4 + जाति 5 + शरीर 5 + अंगोपांग 3 + शरीर बंधन 5 + शरीर संघात 5 + संहनन 6 + संस्थान 1. कथा संख्या 36 4 कर्म-दर्शन 185
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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