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________________ 762. नो- कषाय की नौ प्रकृतियों के उत्कृष्ट एवं जघन्य बंध की स्थिति कितनी है ? उ. पुरुषवेद, रति और हास्य प्रकृति का उत्कृष्ट बंध दस कोटाकोटि सागर प्रमाण, स्त्री वेद का पन्द्रह कोटाकोटि सागर प्रमाण तथा भय, शोक, जुगुप्सा, अरति एवं नपुंसकवेद का उत्कृष्ट बंध बीस कोटाकोटि सागर प्रमाण है। पुरुषवेद का जघन्य स्थिति बंध आठ वर्ष एवं शेष सभी प्रकृतियों का मिथ्यात्व मोह की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटाकोटि सागर प्रमाण है उनकी उत्कृष्ट स्थिति में भाग देने पर जो लब्ध माना है उसमें पल्य का असंख्यातवां भाग कम जानना चाहिए। 763. मोहनीय कर्म बंध के कितने कारण हैं? उ. मोहनीय कर्म बंध के छ: कारण हैं(1) तीव्र क्रोध (3) तीव्र माया (5) तीव्र नो- कषाय (2) (4) (6) 764. मोहनीय कर्म की स्थिति कितनी है ? उ. तीव्र मान तीव्र लोभ तीव्र दर्शन मोह ( मिथ्यात्व ) 1. चारित्र मोहनीय की स्थिति — जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट चालीस करोड़ करोड़ सागर । 2. दर्शन मोह कर्म की स्थिति —— जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सत्तर करोड़ करोड़ सागर । 765. मोहनीय कर्म का अबाधाकाल कितना है ? उ. 1. चारित्र मोह—जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट चार हजार वर्ष । 2. दर्शन मोह—जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सात हजार वर्ष । 766. मोहनीय कर्म का लक्षण एवं कार्य क्या है ? उ. मोहनीय कर्म मद्यपान के समान है। जैसे मद्यपान करने वाले को कुछ भी सुध-बुध नहीं रहती, वैसे ही दर्शन मोह के उदय से जीव विपरीत श्रद्धा करता है एवं चारित्र मोह के उदय से वह विषय भोगों में आसक्त बनता है, वह अपने हिताहित का विवेक खो देता है। 767. मोहनीय कर्म भोगने के कितने हेतु हैं ? उ. मोहनीय कर्म के उदय से जीव मिथ्यादृष्टि एवं चारित्र हीन बनता है। इसके अनुभाव पांच हैं— कर्म-दर्शन 165
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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