SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 715. कषाय मोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से प्रति समय कषाय का वेदन होता है एवं जिसके द्वारा __ आत्मा कषाय से उतप्त रहती है, उसे कषाय मोहनीय कर्म कहते हैं। 716. चारित्र मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियां कितनी हैं? उ. पचीस। 717. चारित्र मोहनीय कर्म की पचीस प्रकृतियों में से कषाय चारित्र मोहनीय की कितनी प्रकृतियां हैं? उ. कषाय चारित्र मोहनीय की सोलह प्रकृतियां हैं 1-4 अनन्तानुबंधी-क्रोध, मान, माया और लोभ। 5-8 अप्रत्याख्यानी—क्रोध, मान, माया और लोभ। 9-12 प्रत्याख्यानी—क्रोध, मान, माया और लोभ। 13-16 संज्वलन-क्रोध, मान, माया और लोभ। 718. अनन्तानुबंधी किसे कहते हैं? उ. अनन्तानुबंधी—जिसका अनुबन्ध (परिणाम) अनन्त होता है उसे अनन्तानुबंधी कहते हैं। ये कर्म ऐसे उत्कृष्ट क्रोध आदि उत्पन्न करते हैं जिनके प्रभाव से जीव को अनन्त काल तक संसार-भ्रमण करना पड़ता है। 719. आगम में वर्णित चार कषाय कौन-कौन से हैं? ___ उ. क्रोध', मान, माया', लोभ-ये चारों कषाय कर्म-बंध के हेत् हैं। 720. अनन्तानुबंधी किसका उपघात करने वाला है? उ. अनन्तानुबंधी कषाय सम्यग्दर्शन का उपघात करने वाला है जिस जीव के अनन्तानुबंधी चतुष्क (क्रोध, मान, माया और लोभ) में से किसी का भी उदय होता है उसके सम्यग् दर्शन उत्पन्न नहीं होता। यदि पहले सम्यक दर्शन उत्पन्न हो गया हो और उसके बाद अनन्तानुबंधी कषाय का उदय हो तो आया हुआ सम्यग् दर्शन भी नष्ट हो जाता है। 721. अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय किसे कहते हैं? उ. अप्रत्याख्यान-विरति मात्र का अवरोध करने वाले कर्म। जो कर्म ऐसे 1. कथा स. 26 2. कथा सं. 27 1: कर्म-दर्शन 157
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy