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________________ दर्शनावरणीय कर्म 568. दर्शन किसे कहते हैं? उ. पदार्थों के आकार - अर्थों की विशेषता को ग्रहण किये बिना केवल सामान्य का ग्रहण करना दर्शन है। इसे निराकार उपयोग या निर्विकल्प उपयोग भी कहते हैं। 569. दर्शन के कितने प्रकार हैं? उ. दर्शन के चार प्रकार हैं 2. अचक्षुदर्शन 3. अवधिदर्शन 4. केवलदर्शन । 1. चक्षुदर्शन 570. चारों दर्शनों का स्वरूप क्या है? उ. चक्षु के सामान्य बोध को चक्षुदर्शन, शेष इन्द्रिय तथा मन के सामान्य बोध को अचक्षुदर्शन, अवधि के सामान्य बोध को अवधिदर्शन और केवल के सामान्य बोध को केवलदर्शन कहते हैं। 571. कौनसे ज्ञान का किस दर्शन से संबंध है ? उ. मतिज्ञान चक्षु अचक्षुदर्शन श्रुतज्ञान अवधिज्ञान दर्शन नहीं अवधिदर्शन मनः पर्यवज्ञान दर्शन नहीं केवलज्ञान केवलदर्शन 572. श्रुतज्ञान व मनः पर्यवज्ञान के दर्शन क्यों नहीं? उ. श्रुतज्ञान वाक्यार्थ विशेष का ग्रहण करता है । मनः पर्यवज्ञान से मन की अवस्थाओं का बोध होता है। वाक्य व मन की अवस्थाएं विशेष होती हैं। जबकि दर्शन से सामान्य का बोध होता है, इसलिए इन दोनों के साथ दर्शन का संबंध नहीं जुड़ता । ज्ञान और दर्शन में भेद क्यों हैं? 573. उ. ज्ञान - दर्शन की प्राप्ति में ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम की समानता रहती है। सामान्यतः क्षयोपशम भी एक ही प्रकार का है। किन्तु द्रव्य में सामान्य और विशेष दोनों धर्म होते हैं, इस दृष्टि से दर्शनावरण के दो रूप बनते हैं— ज्ञान (साकार उपयोग) और दर्शन अनाकार उपयोग। 574. दर्शनावरणीय कर्म किसे कहते हैं ? उ. आत्मा की दर्शन - चेतना को आवृत्त करने वाले कर्म को दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं। कर्म-दर्शन 127
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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