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________________ 4. नेत्र-विज्ञानावरण-देखी हई वस्तु को पहचान न सके। 5. घ्राणावरण-नाक से गंध ले न सके। 6. घ्राण-विज्ञानावरण-गंध को पहचान न सके। 7. रसावरण-स्वाद न ले सके। 8. रस-विज्ञानावरण-स्वाद लेने पर भी वस्तु को पहचान न सके। 9. स्पर्शावरण-स्पर्श का पता न लगे। 10. स्पर्श विज्ञानावरण-स्पर्श होने पर भी वस्तु को पहचान न सके। 557. ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कौनसे गुणस्थान में होता है? ___उ. ज्ञानावरणीय कर्म का बंध पहले से दसवें गुणस्थान तक होता है। 558. ज्ञानावरणीय कर्म का उदय एवं क्षयोपशम भाव कौनसे गुणस्थान में होता है? उ. पहले से बारहवें गुणस्थान तक। 559. ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जीव को क्या मिलता है? उ. ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम जीव को आठ बोलों की प्राप्ति होती हैं : प्रथम चार ज्ञान-(1) मतिज्ञान, (2) श्रुतज्ञान, (3) अवधिज्ञान, (4) मन: पर्यवज्ञान तथा तीन अज्ञान, (5) मति अज्ञान (6) श्रुत अज्ञान, (7) विभंग अज्ञान और (8) भणन-गुणन। 560. ज्ञानावरणीय कर्म का क्षायिक भाव कौनसे गणस्थान में होता है? उ. ज्ञानावरणीय कर्म का क्षायिक भाव 13वें, 14वें गुणस्थानों में तथा सिद्धों में होता है। 561. ज्ञानावरणीय कर्म का उपशम कौनसे गुणस्थान में होता है? ___उ. ज्ञानावरणीय कर्म का उपशम नहीं होता। 562. उदय के तैंतीस बोलों में ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से कितने बोल पाते हैं? उ. दो-अमनस्कता और अज्ञानता। 563. अमनस्कता और अज्ञानता सावध है या निरवद्य? उ. दोनों नहीं। 564. अमनस्कता और अज्ञानता सादि है या अनादि? ___ उ. अमनस्कता सादि और अज्ञानता अनादि। कर्म-दर्शन 123
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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