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________________ 529. उदयजन्य व क्षयोपशमजन्य अज्ञान कौनसे गुणस्थान तक होता है? __उ. उदयजन्य अज्ञान 12वें गुणस्थान तक तथा क्षयोपशमजन्य अज्ञान पहले व तीसरे गुणस्थान तक कहलाता है। 530. ज्ञान अज्ञान क्यों हैं? उ. * मिथ्यादृष्टि का ज्ञान अज्ञान कहलाता है। उसके चार हेतु हैं * मिथ्यादृष्टि में सत्-असत् का विवेक नहीं होता। * उसका ज्ञान भवभ्रमण का हेतु होता है। * वह अपनी इच्छा के अनुसार मोक्ष के हेतुभूत तत्त्वों को भवभ्रमण का हेतु मानता है। * उसको ज्ञान का फल (विरति) प्राप्त नहीं होता। 531. ज्ञान को अज्ञान क्यों कहा गया है? उ. पात्र भेद से ज्ञान को अज्ञान कहा गया है। जैसे—ब्राह्मण के घड़े का पानी, हरिजन के घड़े का पानी। 532. अज्ञान कितने हैं? उ. अज्ञान तीन हैं—मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, विभंग अज्ञान। 533. मति अज्ञान किसे कहते हैं? उ. इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाला सम्यक्त्व रहित ज्ञान मति अज्ञान कहलाता है। 534. श्रुत अज्ञान किसे कहते हैं? उ. इन्द्रिय और मन के द्वारा शब्द, संकेत आदि के सहारे होने वाला सम्यक्त्व रहित श्रुत, श्रुत-अज्ञान कहलाता है। 535. विभंग अज्ञान किसे कहते हैं? उ. मिथ्यात्वी का अतीन्द्रिय ज्ञान विभंग अज्ञान कहलाता है।' 536. ज्ञान पांच हैं, अज्ञान तीन, ऐसा क्यों? उ. 1. प्रथम तीन ज्ञानों का विपर्यास होता है। शेष दो ज्ञान-मन:पर्यवज्ञान और केवलज्ञान का विपर्यास नहीं होता। अत: अज्ञान तीन ही है। 2. मनः पर्यव ज्ञान व केवलज्ञान सिर्फ सम्यकदृष्टि संयति के ही होता है। इसलिए अज्ञान तीन ही है। 1. कथा सं. 12 aan कर्म-दर्शन 119
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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