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________________ 495. अवधि व मन:पर्यवज्ञान में अभेद क्या है? उ. * दोनों ज्ञान छद्मस्थ के होते हैं। * दोनों ज्ञान का विषय है-रूपी द्रव्य। * दोनों ज्ञान क्षायोपशमिक भाव हैं। * दोनों प्रत्यक्ष ज्ञान हैं। 496. ऋजुमति और विपुलमति में समानता क्या है? उ. * उत्कृष्ट ऋजुमति और विपुलमति दोनों आनुगमिक होते हैं, अनानुगमिक नहीं। * उत्कृष्ट ऋजुमति और विपुलमति दोनों मध्यगत होते हैं, अन्तगत नहीं। * उत्कृष्ट ऋजुमति और विपुलमति दोनों सम्बद्ध होते हैं, असंबद्ध नहीं। * जघन्य ऋजुमति सब प्रकार संभव है। 497. केवलज्ञान किसे कहते हैं? उ. जो ज्ञान समस्त द्रव्यों और पर्यायों को जानता है वह केवलज्ञान है। 498. केवलज्ञान का स्वरूप क्या है? उ. केवलज्ञान के स्वरूप को समझने के पांच बिन्दु हैं 1. केवलज्ञान असहाय है, क्योंकि वह मति आदि ज्ञानों से निरपेक्ष है। 2. केवलज्ञान निरावरण है, इसलिये शुद्ध है। 3. अशेष आवरण की क्षीणता के कारण प्रथम क्षण में ही पूर्णरूप से उत्पन्न होता है, इसलिए वह सकल/सम्पूर्ण है। 4. केवलज्ञान अन्य ज्ञानों के सदृश नहीं है इसलिये असाधारण है। 5. ज्ञेय अनन्त है, इसलिये केवलज्ञान भी अनन्त है। 499. केवलज्ञान का विषय क्या है? उ. केवलज्ञानी द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव की अपेक्षा से सर्व द्रव्यों, क्षेत्रों, __ काल और भावों को जानता-देखता है। 500. केवलज्ञान के कितने प्रकार हैं? उ. केवलज्ञान के दो प्रकार हैं—भवस्थ केवलज्ञान और सिद्ध केवलज्ञान। 501. भवस्थ केवलज्ञान किसे कहते हैं? ... उ. जो ज्ञान मनुष्य भव में अवस्थित व्यक्ति के ज्ञानावरणीय आदि चार घाति कर्मों के क्षीण होने पर उत्पन्न होता है। जब तक शेष चार अघातिकर्म क्षीण 1880 कर्म-दर्शन 113
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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