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________________ 1. द्रव्य से-अवधिज्ञानी जघन्यतः अनन्त रूपी द्रव्यों को तथा उत्कृष्टतः सर्वरूपी द्रव्यों को जानता देखता है। 2. क्षेत्र से-अवधिज्ञानी जघन्यतः अंगुल का असंख्यातवां भाग तथा उत्कृष्टतः अलोक में लोक प्रमाण असंख्य खंडों को जानता देखता 3. काल से-अवधिज्ञानी जघन्यतः आवलिका के असंख्यातवें भाग को जानता देखता है, तथा उत्कृष्टतः अतीत और अनागत काल के असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी को जानता देखता है। 4. भाव से-अवधिज्ञानी जघन्यतः तथा उत्कृष्टतः अनन्त भावों को जानता देखता है। वे अनन्त भाव भी सब भावों का अनन्तवां भाग है। 464. वर्तमान-काल अवधिज्ञान का विषय बनता है या नहीं? उ. नहीं, क्योंकि वर्तमानकाल सूक्ष्म होता है। 465. परम अवधिज्ञान का कालमान कितना है? उ. परम अवधिज्ञान का कालमान है-अन्तर्मुहूर्त। उसके पश्चात् केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। 466. बाह्यलब्धि और आभ्यन्तरलब्धि अवधिज्ञान किसे कहते हैं? उ. बाह्यलब्धि-अवधिज्ञान—जिस स्थान में अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है, उसी स्थान पर स्थित अवधिज्ञान कुछ नहीं देख पाता। उस स्थान से हटकर अंगुल, अंगुल पृथक्त्व, यावत् संख्येय योजन अथवा असंख्येय योजन दूर जाने पर देख पाता है, यह बाह्यलब्धि अवधिज्ञान है। आभ्यन्तरलब्धि-अवधिज्ञान-जिस स्थान में अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उस स्थान से अवधिज्ञानी निरन्तर संबद्ध संख्येय अथवा असंख्येय योजन क्षेत्र को अवधि से जानता है देखता है, वह आभ्यन्तरलब्धि अवधिज्ञान कहलाता है। 467. चारों गति के जीवों में से कौनसे अवधिज्ञानी सर्वतः देखते हैं और कौनसे देशतः? उ. नैरयिक, देव और तीर्थंकर अबाह्य अवधिज्ञान वाले होते हैं—वे सर्वत: देखते हैं। शेष (अन्तगत अवधिज्ञान वाले) मनुष्य और तिर्यंच एक देश से देखते हैं। 106 कर्म-दर्शन 106 कर्म-दर्शन EE
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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