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________________ समय अधिक हो चुका था। सभी मित्र वहां से अपने-अपने घर की ओर प्रस्थित हुए। सारसिका भी धीरे से उस मित्रमंडली के पीछे चल पड़ी। क्योंकि उसने यह निश्चय कर लिया था कि पद्मदेव ही तरंगलोला के पूर्वजन्म का पति है, इसलिए वह पद्मदेव के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहती थी। वे कहां रहते हैं? उनकी स्थिति कैसी है? उनकी पारिवारिक स्थिति कैसी है?– यह जानने के लिए वह गुप्त रूप से उनके पीछे-पीछे जाने लगी। मार्ग में किसी प्रकार का भय तो था ही नहीं। इधर पौषध व्रत में लीन तरंगलोला को आधी रात तक नींद नहीं आई। उसमें चित्रांकन की समायोजना का परिणाम जानने की उत्कंठा थी। विचारों में चक्कर लगाती हुई वह पश्चिम रात्रि में निद्राधीन हुई थी। दर्दभरे मन को स्वच्छ नींद भी नहीं आती...... अनेक प्रकार के स्वप्नों से वह घिर गई थी। प्रात:काल के समय उसने एक स्वप्न देखा कि वह एक पर्वत पर चढ़ रही है, मार्ग कठिन है, फिर भी वह उल्लासपूर्वक पर्वत के शिखर पर पहुंच गई और वहां प्रसन्नतापूर्वक घूम रही है। ऐसे विचित्र स्वप्न को देख वह जागृत हुई। उसने देखा कि परिवार के अन्यान्य सदस्य प्रतिक्रमण की पूर्व तैयारी कर रहे हैं.. सुनन्दा ने पुत्री को चौंकी हुई जानकर पूछा-'क्यों तरंग? अचानक कैसे चौंक पड़ी?' 'नहीं, मां! मैंने एक स्वप्न देखा और....' 'स्वप्न?' 'हां, स्वप्न में मैं एक दुर्गम पर्वत पर चढ़ गई थी और उसके शिखर पर उल्लासभरे हृदय से नाच रही थी."इस स्वप्न का फल क्या होगा?' ____ 'बेटी! स्वप्नशास्त्र के अनुसार तेरा यह स्वप्न किसी भावी शुभ की सूचना देता है। स्वप्न से मनुष्य का जीवन-मरण, सद्भाग्य-दुर्भाग्य, हानि-लाभ जाने जा सकते हैं...... बुरे स्वप्न का फल भी बुरा ही होता है। तेरा स्वप्न उत्तम है... तू जाग ही गई है तो अब प्रतिक्रमण की तैयारी कर...... 'जी......' कहकर तरंगलोला प्रतिक्रमण करने उद्यत हुई। १४. आशा का तन्तु सूर्योदय हो गया। प्रतिक्रमण कर, पौषध संपन्न कर सभी आराधना कक्ष से बाहर आए। संतों के दर्शनार्थ गए, फिर पारणा करने से पूर्व दतौन करने बैठ गए। तरंगलोला दतौन करने बैठी। परन्तु उसके नयन सारसिका को ढूंढ रहे ८८ / पूर्वभव का अनुराग
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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