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________________ रत्नजटिक पर्यंक पर या मसृण गद्दियों पर नहीं सोया जाता। पौषध व्रत स्वीकार करने वाला भूतल पर एक चादर बिछाकर रात बिताता है। उस रात वह नींद को बहुमान नहीं देता, केवल धर्माराधना, धर्मजागरणा करता रहता है। राजा हो या रंक, सेठ हो या नौकर, स्वामिनी हो या दासी - सभी इस व्रत की समानरूप से आराधना करते हैं। इस व्रत की आराधना में किसी की अतिरिक्तता नहीं होती। यह आराधना त्याग और तप की आराधना है। सारसिका ने आज पौषध नहीं किया, क्योंकि वह अपनी प्रिय सखी तरंगलोला के कार्य में व्यस्त थी । उसका मन यदा-कदा संशयग्रस्त बन जाता था कि इतनी विशाल नगरी में से इन चित्रों का अवलोकन करने तरंगलोला का पूर्वजन्म का पति कैसे आ पाएगा ! दीपमालिकाओं का पूरा प्रकाश चित्रखंड के प्रत्येक चित्र को स्पष्टता दे रहा था। और उस प्रकाश के आलोक में चित्रपट्टों पर अंकित कथा जीवंत बन रही थी । रात्रि की तीन घटिकाएं व्यतीत हो चुकी थीं। उस समय नगरी के नागरिकों झुंड के झुंड कौमुदी महोत्सव मनाने के लिए घर से निकल पड़े थे। १३. पद्मदेव कौमुदी पर्व की रात ! कार्तिकी पूर्णिमा ! पूर्ण चन्द्रमा आकाश में देदीप्यमान था विकसित सुनहरा पद्म ं 1 मानो आकाशरूपी सरोवर में नगरसेठ के भवन के पास से मानो मानवों का समुद्र उमड़ने लगा । थे" अनेक दंपती उल्लासभरे हृदय से कौमुदी पर्व की मस्ती मनाने निकल पड़े पारिवारिक जन भी सावधानीपूर्वक इधर-उधर देखते हुए चल रहे थे वे पूर्ण सावधान थे कि कोई छोटा-बड़ा सदस्य भूल से छिटक न जाए" कुछेक युवक अपनी मित्रमंडली के साथ रसभरी बातें करते हुए चल रहे थे। कुछेक प्रौढ़ स्त्रियां भी समूहरूप में रंगबिरंगी वस्त्रों को धारण कर नवयौवना की भांति भटकती हुई चल रही थीं। - और वाहनों वाले सेठ साहूकार अपने-अपने वाहनों में बैठ कर घूमने निकल पड़े थे। सभी पथिकों की दृष्टि दीपमालिकाओं से जगमगाती उस चित्रशाला पर अवश्य टिकती और अनेक स्त्री-पुरुष चित्रों को देखने मुड़ जाते । वे चित्रों को देखकर आनन्द का अनुभव करते, प्रसन्नता व्यक्त करते थे. कुछेक चित्रों से प्रभावित व्यक्ति एक ओर स्थित सारसिका से पूछते कि ८२ / पूर्वभव का अनुराग
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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