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________________ अपने बच्चों को प्यार करना और इस दुःखद घटना को भूल चक्रवाकी क्या समझे और क्या सुने ? वह बार-बार पारधी की ओर देख रही थी। वह अपनी भाषा में क्रन्दन करती हुई बोल रही थी मेरा सहवास बीच में ही टूट गया" ओह ! मेरी पांख टूट गई प्रियतम का वियोग सहन नहीं कर सकती मैं एक पलभर के लिए भी हम एक-दूसरे की आंखों में बस तेरा प्रेम मेरे लिए अमृत बना हुआ था" मेरा अमृत पीने वाले प्राणी पानी पीकर कैसे जीवित प्यारे स्नेही! तेरा वियोग असह्य है मैं तुझे नही नहीं मेरी और तेरी आत्मा एक तू चला जाए और मैं जीवित रहूं" यह चली जा जाना।' कर विश्व को भुला देते थे प्रेम तेरे लिए अमृत था रह सकते हैं? प्यारे चक्रवाक ! कैसे मिल सकूंगी ? नहीं है मात्र शरीर पृथक्-पृथक् हैं नहीं हो सकता | सुदंत चक्रवाकी की ओर सजल नेत्रों से देख रहा था। चिता जल रही थी। और 1 चक्रवाकी मानो कोई महागीत गाती हुई चिता में कूद पड़ी । थे। शरीर कांप उठा सुदंत उठा। उसके नयन आंसुओं की अजस्र धारा में विलीन हो गए वह करुण स्वरों में बोला- 'ओह! मेरी बहिन ! ओ ! बहिन ! यह तूने क्या किया ? मेरे पाप का प्रायश्चित्त तूने क्यों किया ? रे ! मैंने अपनी कुल - मर्यादा का लोप कर महान् पाप कर डाला एक आशा से ओतप्रोत बीज का मेरे कारण नाश हो गया मैं इस पाप भार को कैसे सहन कर पाऊंगा ?' सुदंत आया था अपनी प्रियतमा वासरी को दिए गए वचन का पालन करने के लिए, हाथी का शिकार कर दंतशूल लेने के लिए " पारधी का व्यवसाय ही शिकार है अनेक जीवों का वध कर ये लोग जीवित रहते हैं। सुदंत चिता के निकट गया चक्रवाकी शांत हो चुकी थी उसकी काया भड़भड़ कर जल रही थी परन्तु उसने कोई क्रन्दन नहीं किया उसकी कोमल काया भस्मसात् हो गई। सुदंत के नयनों से अश्रुधारा सतत प्रवहमान थी। उसके प्राण उसने मन ही मन सोचा, अब जीने में कोई सार नहीं है छटपटा रहे जिसके हाथ थे में दूसरों को दुःखी करने व्यवसाय के अतिरिक्त कोई व्यवसाय न हो, उसका जीना भी क्या जीना ? मेरे द्वारा आचरित इस घोर पाप का बोझ ढोता हुआ मैं कब - कैसे सुखी रह पाऊंगा। चिता की ओर देखकर वह बोला- 'बहिन ! ओ बहिन ! सुन ले। तू बहुत दूर मत चली जाना मैं अभी तेरे साथ ही आ रहा पूर्वभव का अनुराग / ३१
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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