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________________ मनुष्य करता है वैसे ही पशु-पक्षी भी करते हैं। मात्र भाषा द्वारा होने वाली अभिव्यक्ति अन्य जाति को ज्ञात नहीं होती, परन्तु भावना से तो सब कुछ जान लिया जाता है। __ मोह का अंजन प्राणीमात्र के नयनों में आंजा हआ रहता ही है। आसक्ति, अनुराग, मिलन की आकांक्षा, सुखाभास, विरह-व्यथा ये सभी को होते हैं." ज्ञानी पुरुष इसी को संसार कहते हैं... संसार और कुछ नहीं..... वह है जीवमात्र का विशाल कारागृह.... उसका न आर है और न पार.... उसका न आदि है और न अन्त। आसक्ति के गुलाबी रंग से शोभित इस संसार के बंधनों को तोड़ पाना सहज-सरल नहीं होता...' चक्रवाक युगल! दोनों एक-दूसरे में समा गए थे। उसी समय एक विशालकाय गजराज सरोवर के किनारे आया और मस्ती से सरोवर में उतरा। स्नानगृह में स्त्री जैसे सब कुछ भूल जाती है, वैसे ही हाथी भी जलक्रीड़ा में मस्त हो जाता है। गजराज सरोवर में धीरे-धीरे चलने लगा और अपनी सूंड से जल को फव्वारे की तरह चारों ओर फेंकने लगा और उसी समय सरोवर तरंगित हो उठा। इतनी देर जो सरोवर शांत था, वह अब कल्लोलित हो गया। तरंगें उछलने लगीं। चक्रवाक युगल शांतचित्त वहीं क्रीड़ा कर रहा था। आसक्ति के बंधन में बंधा प्राणी अपने सिवाय अन्य किसी की कल्पना नहीं कर पाता। इसी समय शिकार की खोज में सुदंत पारधी वहां आ पहुंचा। विशालकाय गजराज को देखकर उसका हृदय हर्ष से बांसों उछलने लगा। हाथी के दंतशूल विशाल थे। वह जैसे चाहता था, वैसे ही सुंदर, स्वच्छ और श्रेष्ठ थे। सुदंत ने व्याघ्रचर्म धारण कर रखा थ। उसकी काया तो मजबूत थी ही...... उसकी भुजाएं वज्र के समान थीं। उसने धनुष हाथ में लिया..... एक बाण निकाला..... इतने में ही उसे ख्याल आया कि जब तक हाथी जल में क्रीड़ा करता है तब तक उसे मारा नहीं जा सकता...... वह एक वृक्ष के नीचे बैठ गया और हाथी के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगा। चक्रवाक युगल वहीं घूम-फिर रहा था। गजराज सरोवर को छोड़ बाहर निकला। गजराज को तट पर आया देखकर चक्रवाक युगल ने उड़ना प्रारंभ किया... और सुदंत ने बाण छोड़ा..... ओह! वह बाण हाथी को नहीं लगा, किन्तु हाथी की सीध में उड़ने वाले चक्रवाक को लगा..... उसकी पांख टूट गई...... हाथी चौंककर भाग गया..... २८ / पूर्वभव का अनुराग
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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