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________________ 'मुझे उनसे मिलना है... आप मुझे उनके पास पहुंचा दें।' सारसिका ने कहा। रक्षक दो क्षण सारसिका की ओर देखता रहा.... उसे यह विश्वास हो गया कि स्त्री रूपवती होने पर भी संस्कारी और कुलीन लग रही है। तत्काल उसने एक दासी को बुला भेजा। फिर सारसिका से कहा-'तुम अजान लगती हो?' 'आपकी पहचान शक्ति श्रेष्ठ है...... मुझे आपके छोटे सेठ ने बुलाया था, इसलिए आई हं......." रक्षक ने कहा-'परखने की शक्ति तो ठीक..... यहां आने वालों को मैं पहचानता हं...... इतने में ही एक दासी भवन से बाहर आई और द्वार पर आकर खड़ी हो गई। रक्षक ने उस दासी से कहा- 'यह बहिन छोटे सेठ से मिलना चाहती है। इसे वहां पहुंचा दो।' दासी ने सारसिका को संकेत किया और उसे लेकर छोटे सेठ के कक्ष की ओर चल पड़ी। भवन में प्रवेश करने के पश्चात् सारसिका ने देखा कि भवन अत्यन्त सुन्दर है.... समृद्ध है....... यदि यह घर तरंगलोला को मिलता है तो इसमें हानि क्या है.....बाधा केवल परदेशगमन की थी, इसका भी कोई न कोई समाधान हो ही सकता था..... पद्मदेव को परदेश न भेजने की शर्त रखने से भी काम बन जाता...... इन विचारों में डूबती-उतरती सारसिका दासी के पीछे-पीछे भवन के तीसरी मंजिल पर गई. एक कक्ष के पास जाकर दासी खड़ी रह गई... खंड का द्वार खुला था। उस पर मखमली परदा टंगा हुआ था। दासी ने धीरे से सारसिका को कहा- 'यह छोटे सेठ का कक्ष है। आप अंदर जाएं.....' सारसिका परदा दूर कर भीतर गई। उसने देखा-रत्नालंकारों से शोभित पद्मदेव एक सुखासन पर बैठा है. वह किसी विचार में मस्त है। उसके हाथ में एक चित्र है और वह उस चित्र को देखने में तल्लीन है...... सारसिका अत्यधिक निकट आकर खड़ी हो गई। तब वह देख सकी कि पद्मदेव की आंख से एक अश्रुबिंदु निकल कर उस चित्र पर पड़ा है और सामने के एक आसन पर एक ब्राह्मण कुमार जैसा एक युवक बैठा है। सारसिका ने पद्मदेव को नमन करते हुए कहा-'आयुष्मन् की जय हो।' किन्तु पद्मदेव का मन उस चित्र में अटक गया था। उसने ऊपर दृष्टि नहीं की, किन्तु वह ब्राह्मण कुमार अपने दांत दिखाते हुए बोला- 'मैं एक ब्राह्मण यहां बैठा हूं, फिर भी तूने पहले मुझे नमस्कार न कर इस शूद्र को नमस्कार किया है!' . सारसिका अत्यंत भयभीत हो गई..... अरे! मैं कहां आ गई? उसने १०० / पूर्वभव का अनुराग
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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