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________________ गोनाड्स काम-ग्रन्थियां- स्त्री और पुरूष के लैगिंक अवयवों को गोनाड्स कहते हैं। ये प्रजनन की अटूट श्रृंखला को चालू रखने का कार्य करते हैं, नई प्रजोत्पत्ति के बीज पैदा करते हैं। गोनाड्स अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों के रूप में इस प्रकार के होर्मोन्स का स्राव करते हैं जिनसे स्त्रीत्व और पुरूषत्व जागृत रहता है। शुक्रपिण्ड के अन्तःस्त्राव को सामूहिक रूप से एन्ड्रोजन कहते है। उनमें मुख्य स्त्राव है टेस्टोस्टेरोन / स्त्री-पुरूष के व्यक्ति और व्यवहार में पाये जाने-वाले सामान्य भेदों में टेस्टोस्टेरोन जिम्मेदार है। स्त्री की आवाज सुरीली, त्वचा में चिकनापन, शारीरिकसौन्दर्य का हेतु एस्ट्रोजन है। ____दस-ग्यारह वर्ष की अवस्था में लड़की के शरीर में स्थित जैविक घड़ी के रूप पीनियल ग्रंथि से संकेत मिलने पर हाईपोथेलेमस के निश्चित अंश जागृत एवं सक्रिय हो जाते हैं। साव के माध्यम से पिच्युटरी के अग्र खंड को निर्देश भेजा जाता है कि वह तंतु उत्तेजक स्राव (फोलिकल स्टिम्यूलेटिंग होर्मोन) के स्राव को प्रारंभ करे, पिच्युटरी से यह स्राव डिम्बाशय तक पहुंचने पर उसकी कार्यशक्ति की सक्रियता से एस्ट्रोजन का स्राव प्रारंभ हो जाता है। स्त्रियों की तरह पुरूषों में भी पिच्युटरी के होर्मोन वृषण की क्रियाओं को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लैंगिक परिवर्तन भी गोनाड्स के स्राव पर निर्भर है। काम ग्रंथियों के सम्यग् विकास एवं कार्यक्षमता द्वारा तारूण्य सुरक्षित रह सकता है। अन्तःस्रावी ग्रंथियों की सक्रियता या निष्क्रियता से होने वाले प्रभावों को संक्षेप में निम्न चार्ट के द्वारा भी समझ सकते हैं।57(घ) सक्रियता निष्क्रियता 1) पीनियल- यह तीसरी आंख है। काम 1. शिशुवय में कामवासना की जागृति, ग्रंथियों एवं शरीर में जल संतुलन रक्तचाप, पानी की वृद्धि। रखती हैं। 2) पिच्युटरी : यह ग्रंथियों में प्रधान है। 2. बालक बौना बनता है। शरीर स्थूल मानसिक और शारीरिक विकास हो जाता है। व्यक्ति उद्दण्ड का संतुलन। असत्यभाषी बन जाता है। 350 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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