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________________ पृष्ठखंड नाड़ीतंत्र की ही एक शाखा के रूप में कार्य करता है। यदि किसी कारण से पिच्यूटरी में क्षति हो जाती है तो उसके फलस्वरूप अन्य अन्तःस्रावी ग्रंथियों की कार्यजा शक्ति भी गड़बड़ा जाती है। नासिका एवं मस्तिष्क के नीचे के भाग में होने वाले रक्त-संचरण के साथ इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है। थाइराईड- यह ग्रंथि स्वर यंत्र के समीप श्वासनली के ऊपरी छोर पर स्थित है। इसका महत्त्वपूर्ण स्राव है- थाइरोक्सिन। थायरोक्सिन का स्राव एक दिन में एक ग्राम के दसवें हिस्से जितना होता है। थाइराईड में कमी होने पर बहुत कम मात्रा में स्राव होता है अथवा स्राव न हो तो बालक का शरीर लम्बा नहीं होता, और मस्तिष्क के कोषों पर प्रभाव होने से मंद बुद्धि होता है। थायरोक्सिन का मूल रसायन आयोडिन है। भोजन में आयोडिन उचित प्रमाण में नहीं मिलता तब थाइराईड ग्रंथि मोटी हो जाती है। गला फूल कर बेडोल बन जाता है। थाइरोक्सिन की अनुपस्थिति से शरीर की जैविक क्रियाएं बहुत शिथिल हो जाती हैं। नाड़ी की गति मंद हो जाती है। रक्त के आयोडिन युक्त कणों को अपनी ओर आकर्षित करने की इस ग्रंथि में विशेष क्षमता है। भय, क्रोध आदि संवेगों में इसका स्राव असंतुलित हो जाता है। रासायनिक संरचना में असामान्य परिवर्तन भी गंभीर परिणाम पैदा कर देता है। यह मस्तिष्क और प्रजनन के अवयवों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी का कार्य करती है। इस ग्रंथि को विपुल मात्रा में रक्त की आपूर्ति की जाती है। थाइराईड शरीर में ऊर्जा उत्पादन का मुख्य अवयव है। इसके स्राव शरीरगत विषों का प्रतिकार करते हैं और मस्तिष्क के संतुलन को बनाये रखते हैं। पैराथाइराईड ग्रंथि- थाइराईड के पृष्ठभाग में अवस्थित यह चार भागों में विभक्त है। इसके स्राव को 'पेराथोर्मोन' कहते हैं। यह ग्रन्थि शरीर में केल्सियम और फास्फोरस के चयापचय का नियंत्रण तथा विजातीय तत्त्वों का निष्कासन भी करता है। आत्म-संयम, संतुलित स्वभाव, हृदय की पवित्रता, प्रेम, सद्भाव, उच्च-विचार जैसे मानवीय गुणों के विकास में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति होने पर इसके स्राव व्यवस्थित कार्य करते है।57(ख) थायमस ग्रंथि- यह ग्रंथि छाती के मध्य में हृदय से थोड़ी सी ऊपर की ओर होती है। इसका रंग भूरा होता है। शिशुवय में शारीरिक- विकास का नियंत्रण थायमस करती है। 13 वर्ष की आयु तक विकास का अधिकतर अंश पूर्ण हो जाता है। इसका महत्त्वपूर्ण कार्य है-काम-ग्रंथि को सक्रिय न होने देना, जिससे यौवनावस्था के उन्मादों 348 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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