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________________ जीवनभर चलती है। उन क्रियाओं को ऐच्छिक, अनैच्छिक इन दो भागों मे विभक्त किया है।51 शारीरिक क्रिया अनैच्छिक क्रिया ऐच्छिक क्रिया सहज जटिल अर्द्ध ऐच्छिक क्रियाएं अथवा आदत जन्य ऐच्छिक क्रियाएं अपने उद्देश्य पूर्ति अथवा रूचि-संतुष्टि के लिये चेतना रूप से की जाती है। ये क्रियाएं अर्जित होती हैं क्योंकि इन्हें सीखते हैं। - जटिल क्रिया-मूल प्रवृत्त्यात्मक क्रिया होती हैं। इसमें ज्ञानात्मक, रागात्मक और क्रियात्मक तीनों तरह की मानसिक क्रियाएं होती है। इसके अतिरिक्त इस क्रिया का सम्पादन शरीर के किसी एक अंग से नहीं होता, पूरा शरीर सक्रिय रहता है। चिड़ियों का घोंसला बनाना या मधुमक्खी का छत्ता बनाना एक जटिल क्रिया है। यद्यपि मैक्डूगल ने मूल प्रवृत्त्यात्मक क्रिया में संज्ञात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक - तीनों तरह की मानसिक प्रक्रियाओं की चर्चा की है तथापि उसने भावात्मक पहलु या संवेग पर अधिक जोर दिया है। मैक्डूगल ने मुख्य चौदह मूल प्रवृत्तियों का उल्लेख किया है। प्रत्येक मूल प्रवृत्ति किसी न किसी प्रकार के भाव या संवेग से सम्बद्ध होती है। उदाहरण के लिये - भागने की मूल प्रवृत्ति का सम्बन्ध भय के संवेग से होता है। ऐच्छिक क्रियाएं चेतन तथा अर्जित होती हैं जबकि अनैच्छिक क्रियाओं का स्वरूप इससे सर्वथा भिन्न है। अनैच्छिक क्रियाओं में छह प्रकार की क्रियाएं समाविष्ट है।52 (1) स्वंय संचालित क्रियाएं (2) आकस्मिक क्रियाएं (3) सहज क्रियाएं (4) सम्बद्ध सहज क्रियाएं (5) भावनाजन्य क्रियाएं (6) मूलप्रवृत्यात्मक क्रियाएं। (1) स्वंय संचालित क्रियाएं- हमारे शरीर की बहुत सी क्रियाएं स्वयं संचालित हैं जो शरीर को जीवित रखने के लिये परमावश्यक है। इनके संचालन में प्रयत्न की अपेक्षा नहीं रहती है। जैसे- रक्त-संचार, हृदय की धड़कन, आहार का पाचन, श्वासोच्छ्वास। आन्तरिक अवयवों की क्रिया संचालन का क्षेत्र तंत्रिका तंत्र के 'स्वायत्त तंत्रिका संस्थान' के अन्तर्गत आ जाता है। स्वायत्त 336 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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