SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८) नारमन्च कान फुप्फुस ' जर In this picture the various parts of the head are illustrated in a technical instead of a physiological way. Where the various parts of the brain are illustrated in detail and the scientific names of the various centres are given. The brain does the work of a great central telephone exchange; while in the spinal cord are groups of nerve cells acting as local exchanges. सुषुम्ना/मेरूदण्ड की रचना और कार्य केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र का दूसरा मुख्य अंग है- सुषुम्ना। सुषुम्ना स्नायविक पदार्थों से बनी हुई वर्तुलाकार लम्बी तंत्रिका है। यह कपाल-रन्ध्र से प्रारंभ होकर मेरूरज्जु की कशेरू-नलिका में से गुजरती हुई कटि के दूसरे निलय तक पहुंचती है। सुषुम्ना/मेरू-रज्जु अन्तिम छोर पर तंत्रिकाओं का गुच्छा गरदन सा है। सुषम्ना 45 सेंटीमीटर लम्बी ऊपरी पीठ है। इसकी रचना श्वेत और धूसर दो । मध्य पीठ रंगों से होती है। सुषुम्ना की पूरी लम्बाई से तंत्रिका के युग्म निकलते नीचली पीठ हैं। प्रत्येक तंत्रिका युग्म में ज्ञानवाही त्रिकास्थि । और क्रियावाही- दो प्रकार की कोकिलास्थि तंत्रिकाएं होती हैं। दोनों मिलकर सूचना के आदान-प्रदान का कार्य करती है। ज्ञानवाही तंत्रिकाएं इन्द्रियों द्वारा संग्रहित संदेशों को मस्तिष्क तक पहुंचाती है और क्रियावाही मस्तिष्क से प्राप्त संचालनसम्बन्धी संदेशों को धड़ एवं पैर की मांसपेशियों तक पहुंचाती हैं।49(ख) सुषुम्ना का महत्त्वपूर्ण कार्य निश्चित प्रकार के संवेदनात्मक संदेशों की अविलंब प्रतिक्रिया के लिये प्रतिवर्त सहज क्रिया-केन्द्रों का प्रबंध करना है। जो क्रिया अनैच्छिक रूप से स्वतः हो जाती हैं वे प्रतिवर्त सहज-क्रिया कहलाती है।50 अनेक क्रियाओं का सम्बन्ध सिर्फ सुषुम्ना से है। मस्तिष्क की उनमें कोई भूमिका नहीं रहती। प्रतिवर्त क्रिया अनैच्छिक क्रिया है। यह बहुत ही सरल तथा जन्म जात होती हैं। ऐच्छिक एवं अनैच्छिक क्रियाएं बालक जन्म के समय से ही कुछ न कुछ क्रिया एवं प्रतिक्रिया करने लगता है। इनसे वह वातावरण में अपने एकीकरण की चेष्टा करता है। अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएं त मनालाय भूचालय 1 प्रजनन अवयव क्रिया और शरीर - विज्ञान 335
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy