SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टांग-हृदय में रक्त, मांस, मज्जा, गुर्दा, वस्ति आदि मृदुभाग मातृज एवं शुक्र, धमनी, अस्थि एवं केश, दाढी, नख,दांत, स्नायु आदि स्थिर भाग में पितृज योग माना है।38 चरक संहिता में इसकी विस्तृत तालिका मिलती है। आयुर्वेद के अनुसार शरीरनिर्माण,बुद्धि, बल आदि रसज हैं। इसी प्रकार सत्व, रज और तमोगुण से विभिन्न प्रकार की मानसिक अवस्थाओं का निर्माण होता है। ___ आयुर्वेद के अनुसार प्रथम मास में कलल तथा दूसरे मास में पिण्ड के तीन प्रकार बन सकते हैं- 1. पिण्ड, 2. पेशी, 3. अर्बुद। पिण्ड से पुरूष, पेशी से स्त्री तथा अर्बुद से नपुंसक का गर्भ तैयार होता है।40 पांचवें मास में पांच अंग व्यक्त और उपांग अव्यक्त रहते हैं। यहां भ्रूण को सुख-दुःख की अनुभूति होने लगती है। चेतना की अभिव्यक्ति होती है। छठे माह में स्नायु, शिरा, रोम, नख, त्वचा आदि तथा सातवें माह में सर्वांग पूर्णता और 8-9 वें माह शरीर की पुष्टि हो जाती है।41 जैन दर्शन के अन्तर्गत भगवती आराधना में भी इसी प्रकार का वर्णन है।42 आधुनिक शरीर विज्ञान के अनुसार शास्त्र शरीर 46 क्रोमोसोम (गुणसूत्र) का समवाय है। इसमें 23 गुणसूत्र माता एवं 23 पिता से ग्रहण करता है।43 भ्रूण के लिंग का निर्धारण पिता के शुक्र पर निर्भर है। Y क्रोमोसोम से पुत्र तथा x से पुत्री बनती है। माता के रज में केवल X रहता है जबकि पिता के शुक्र में x तथा Y दोनों होते हैं। माता के x पिता के Y का संयोग पुत्र पैदा करता है। दोनों x हो तो पुत्री पैदा होती है। प्राचीन जैनाचार्यों ने बिना यंत्र के भी अपने अतीन्द्रिय ज्ञान द्वारा गर्भस्थ प्राणी के विकास क्रम को निम्नानुसार बताया है प्रथम सप्ताह में कलल, दूसरे सप्ताह में अर्बुद, तीसरे सप्ताह में पेशी, चौथे सप्ताह में चतुष्कोण मांस पिण्ड के रूप में प्रकट होता है। दूसरे मास में अवयवों की रचना होती है। तीसरे मास में मासपेशियों, नाड़ी संस्थान का विकास हो जाता है। चतुर्थ मास में माता के अंग पुष्ट होते हैं। पांचवें महीने में दो हाथ, दो पैर, सिर बनते हैं। छठे मास में सर्वांगों का विकास होता है। सातवें में 900 नसें, 500 पेशियां तथा 9 धमनियां और 99,000,00 रोम कूप का विकास हो जाता हैं। सिर, दाढ़ी-मूच्छों के बालों को मिलाकर साढ़े तीन करोड़ रोम कूप कहे जाते हैं। आठवें में गर्भ प्राय : पूर्ण हो जाता है।14 क्रिया और शरीर-विज्ञान 323
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy