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________________ का अन्तर समान हो। अथवा दक्षिण स्कंध से वाम जानु का अन्तर समान हो। अथवा वाम स्कंध से दक्षिण जानु का अन्तर समान हो। अथवा पर्यकासन में बैठने पर जिसकी ऊंचाई और विस्तार समान हों, उस संस्थान को समचतुरस्त्र कहा जाता है। धवला के अनुसार समान, मान और उन्मान वाला शरीर-संस्थान समचतुरस्र है30(घ) समचतुरस्र की अनेक व्याख्याएं उपलब्ध हैं। इनमें वृत्तिकार द्वारा व्याख्यायित दूसरा और तीसरा विकल्प अधिक संगत प्रतीत होता है। (2) सादि- जिस शरीर में ऊपर का भाग छोटा और नीचे का बड़ा हो, वह सादि संस्थान कहलाता है। (3) वामन- जिस शरीर के सभी अंग - उपांग छोटे हो, वह वामन है। (4) न्यग्रोध परिमंडल- न्यग्रोध का अर्थ है- बरगद का वृक्षा जिस शरीर की संरचना में वटवृक्ष की तरह नाभि से ऊपर का भाग बड़ा और नीचे का भाग छोटा हो वह न्यग्रोध परिमंडलाकार कहलाता है। (5) कुब्ज- जिस शरीर रचना में हाथ - पैर, शिर और गर्दन प्रमाण के अनुसार नहीं होते, शेष अवयव प्रमाणोपेत होते हैं और पीठ पर पुद्गलों का अधिक संचय हो वह कुब्ज है। __(6) हुण्डक- जिस शरीर में कोई भी अवयव प्रमाणोपेत नहीं है। अंग - उपांग हुण्ड की तरह संस्थित हों, वह हुण्डक संस्थान कहलाता है। इस प्रकार संहनन का सम्बन्ध शरीर-संरचना से, विशेषतः अस्थि-जोड़ों की सुदृढ़ता से है जबकि संस्थान का सम्बन्ध शरीर के आकार-प्रकार अर्थात् लम्बाईचौड़ाई और मोटाई से है। संस्थान -NAM 320 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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