SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रदेशी स्कंध की रचना करते हैं। इस बंधन के पीछे तीन हेतुओं का उल्लेख है1. विमात्र सिग्धता 2. विमात्र रूक्षता 3.विमात्र निग्ध-रूक्षता। प्रथम दो हेतु सदृश बंध के नियम को सूचित करते हैं। तीसरा विसदृश बंध का प्रत क है। भगवती में लिखा है सम निद्धयाए बंधो न होइ, समलुक्खयाए वि न हो।। वेमायनिद्ध लुक्खत्तणेणं बंधो उ खंधाणं॥20(ख) प्रज्ञापना में विसदृश और सदृश- दोनों प्रकार के बंधनों का निर्देश है।21 स्निग्ध रूक्ष गुणों में दो मात्रा का अन्तर होने पर उनमें बंध अवश्यंभावी है। जैसा कि कहा गया है- 'द्वयाधिकादिगुणानान्तु22 'गुणसाम्ये सदृशानाम्23 जिन परमाणुओं या स्कंधों में निग्ध या रूक्ष गुण समान मात्रा में होते हैं उनमें बंध संभव नहीं हैं। स्निग्ध-रूक्ष परमाणुओं के बंध प्रक्रिया यह है-स्निग्ध आदि परमाणु का बंध रूक्ष परमाणुओं के साथ जघन्य मात्रा को छोड़कर होता है। जघन्य का अर्थ एकमात्रा है। जघन्य मात्रा वाले इस प्रकार रूक्ष और निग्ध परमाणु को छोड़कर, दो मात्रा निग्ध परमाणु का दो मात्रा वाले रूक्ष के साथ बंध होता है। विरोधी स्वभाव वाले परमाणु स्कंध, जिनमें दो या उससे अधिक स्निग्धता या रूक्षता होती है, उनमें बन्ध संभव है। निग्ध-रूक्ष गुण को विज्ञान की भाषा में घन विद्युत् और ऋण विद्युत् कहा जा सकता है। प्रोटोन का क्वार्क स्निग्ध का स्निग्ध के साथ और भारी ऋणाणु रूक्ष के साथ रूक्ष के बंधन की पुष्टि करता हैं। इस प्रकार बन्ध के हेतुभूत दो गुण हैं - स्निग्धता और रूक्षता। गुणों की इन मात्रा में तरतमता होने पर परमाणु और स्कंधों के अनन्त-अनन्त प्रकार हो जाते हैं। बंध की प्रक्रिया में सिग्ध या रूक्ष में जो गुण अधिक मात्रा में होगा। नया स्कंध उसी गुण में परिणत हो जाएगा। जैसे एक स्कंध में 21 मात्रा स्निग्ध गुण की है और दूसरे स्कंध में 19 मात्रा रूक्ष गुण की है तो दोनों का संयोग होने पर नया स्कंध स्निग्ध गुण युक्त होगा। स्वतंत्र परमाणुओं में गुण एवं गुणों की मात्रा में परिवर्तन होता रहता है। उसी प्रकार स्कंधों में गुण एवं गुणों की मात्रा में भी परिवर्तन संभव है। इन सारे परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप पुद्गल जगत में पर्यायों का अकल्पित रूपान्तरण निश्चित है। विज्ञान के अनुसार भी यदि किसी परमाणु में से ऋणाणु (इलेक्ट्रोन) निकाल दिया जाये तो वह घन विद्युत आवेशित और एक ऋणाणु जोड़ दिया जाये तो वह ऋण विद्युत आवेशित हो जाता है। जैन तत्वज्ञ यही कहते है, रूक्ष का रूक्ष के साथ, निग्ध का निधि के साथ, दो से लेकर अनन्त गुणांशों की तरतमता से बंध होता है। प्रज्ञापना, उत्तराध्ययन और भगवती जोड़ के अनुसार बन्ध की शर्ते निम्नलिखित चार्ट से समझी जा सकती हैं 290 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy