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________________ में इलेक्ट्रोन हैं। ये सारे कण बाह्य निमित्तों को पाकर परिणत होते रहते हैं। इस परिवर्तन के अलावा कुछ स्वाभाविक परिणमन भी होता है। इससे अणु अन्य ग्यारह रूपान्तरणों से गुजरकर पुन: अपने स्वरूप में अवस्थित हो जाता है। इन सारी प्रक्रियाओं में अत्यल्प समय लगता है। विज्ञान ने उसे 'कण सेकेण्ड की संज्ञा दी है। एक सेकेण्ड का हजार महाशंखवां भाग 'कण सेकेण्ड कहलाता है। महाशंख की संख्या 1 पर 20 शून्य लगाने से बनती है। वहां हजार महाशंख में 1 पर 23 शून्य लगाना होता है। उदाहरण के लिए। महाशंख - 100,000,000,000,000,000,000, हजार महाशंख - 100, 000,000,000,000,000,000,000, उक्त विवेचना से ज्ञात होता है कितने कम समय में प्रोटोन या न्युट्रोन ग्यारह बार परिणमन कर पुन: स्व स्वरूप में अवस्थित हो जाता है। इसे अर्थपर्याय या सूक्ष्म क्रिया के संदर्भ में समझा जा सकता है। अर्थपर्याय की अवधि मात्र ‘एक समय' है जो आवलिका का असंख्यातवां भाग मात्र है। परिणमन का तारतम्य परिणमन भी अनेक स्तरों पर होता है। वर्गीकृत रूप में उसके छह प्रकार हैंअनंतभाग हीन अनंतभाग अधिक असंख्यातभाग हीन असंख्यातभाग अधिक संख्यातभाग हीन संख्यातभाग अधिक संख्यातगुण हीन संख्यातगुण अधिक असंख्यातगुण हीन असंख्यातगुण अधिक अनंतगुण हीन अनंतगुण अधिक इस ‘षड्गुणहानि-वृद्धि' की प्रक्रिया से निकल कर अगुरूलघु गुण के कारण प्रत्येक द्रव्य अपने स्वरूप को सुरक्षित रखता है। कभी पर्याय का परिणमन इतना तीव्र होता है कि द्रव्य की पहचान भी कठिन होती है, कभी पर्याय का परिणमन इतना मंद गति से होता है कि पता ही नहीं चलता-पदार्थ बदला या नहीं। जो परिणमन अनादि है। कभी विलक्षणता या विसदृशता इसमें परिलक्षित नहीं भी होती उसे परिणमन कहने का कारण सत् का त्रयात्मक लक्षण है। सत् की अपरिहार्य मर्यादा का अतिक्रमण कोई भी द्रव्य क्रिया और परिणमन का सिद्धांत 283
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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