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________________ ग्यारहवें गुणस्थान में मोह को उपशान्त कर दिया जाता है किन्तु कुछ समय पश्चात् दबा हुआ कषाय पुनः उभर जाता है। दमन व्यक्ति में स्थाई परिवर्तन नहीं ला सकता । 2. विलयन - प्रवृत्ति को उत्तेजित होने से रोक देना विलयन है। कुछ प्रवृत्तियां मन में उभरती है किन्तु दूसरी प्रवृत्ति सामने आ जाती है, तब वह छूट जाती है अथवा प्रतिपक्षी विचार के द्वारा वह समाप्त हो जाती है। जैनागमों में अनुप्रेक्षा के सिद्धांत के अन्तर्गत प्रतिपक्षी भावना के द्वारा असद् वृत्तियों और आचरणों को समाप्त किया जाता है। दसवैकालिक सूत्र में चार आवेगों की प्रतिपक्षी भावना का सुन्दर चित्रण है। क्रोध के भाव को नष्ट करने क्षमा की भावना आवश्यक है। अभिमान के प्रतिपक्ष में नम्रता, माया के प्रतिपक्ष में आर्जव और लोभ के प्रतिपक्ष में संतोष या अनासक्ति की भावना का विधान किया गया है। 12 3. मार्गान्तरीकरण - मार्गान्तरीकरण का अर्थ है- रास्ता बदल देना। फ्रायड के अनुसार व्यक्ति को संचालित करने वाली मूलवृत्ति एकमात्र काम है। इसका मार्गान्तरीकरण किया जा सकता है। किसी व्यक्ति ने सुन्दर स्त्री को देखा, वह उसके प्रति आकृष्ट होता है किन्तु प्राप्त नहीं होने पर वह आकर्षण की दिशा को बदल देता है। यह मार्गान्तरीकरण की प्रक्रिया है। 4. उदात्तीकरण - इस प्रक्रिया में आवेगों का पूर्ण शोधन कर दिया जाता है। कर्म - शास्त्र की भाषा में उसे क्षयोपशम या क्षयीकरण की संज्ञा दी जा सकती है । उदात्तीकरण की प्रक्रिया क्षयोपशम की प्रक्रिया है। जिसमें कर्मों के कुछ दोषों को सर्वथा क्षीण और कुछ दोषों का उपशमन कर दिया गया। उसमें एक प्रकार की शुद्धता की स्थिति निर्मित हो जाती है। आध्यात्मिक साधना के मुख्य सूत्र तीन हैं- विलयन, मार्गान्तरीकरण और उदात्तीकरण | गौतम ने पूछा- भंते! धर्म श्रद्धा से क्या प्राप्त होता है ? भगवान महावीर ने कहा - धर्म श्रद्धा से अनुत्सुकता पैदा होती है । 1 22 बाहरी दुनिया में जो आकर्षण होता है, इन्द्रिय-विषयों में उत्सुकता होती है, साधना का विकास होने पर वह कम होती जाती है। यही मार्गान्तरीकरण की प्रक्रिया साधना के विकास की प्रक्रिया है। वस्तुतः मोहकर्म की विभिन्न प्रकृत्तियों का क्रमिक क्षयोपशम, उपशम या क्षय ही चेतना के ऊर्ध्वारोहण का उपाय है। 214 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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