SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मों के फलदान की क्रिया उदय कहलाती है। कर्मों का उदय द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से होता है। उदय के दो प्रकार हैं- प्रदेशोदय और विपाकोदय। प्रदेशोदय- फलानुभूति करवाये बिना जो कर्म-परमाणु आत्म-प्रदेशों में ही भोग लिये जाते हैं, वह प्रदेशोदय कहलाता है। विपाकोदय- प्रकृति आदि के अनुरूप स्पष्ट रूप में फल देकर निर्जीण हो, वह विपाकोदय कहलाता है। ज्ञातव्य यह है कि विपाकोदय में प्रदेशोदय निश्चित रहता है किन्तु प्रदेशोदय में विपाकोदय की अनिवार्यता नहीं है। (4) उदीरणा- नियत अवधि से पूर्व प्रयत्न पूर्वक कर्मों का उदय, उदीरणा कहलाती है।109 उदीरणा किन कर्मों की होती है? इस सन्दर्भ में शास्त्रकार का मन्तव्य है कि जिस कर्म प्रकृति का उदय चल रहा हो, उसकी सजातीय कर्म-प्रकृति की उदीरणा संभव हैं। 10 उदीरणा का दूसरा नाम अपक्व पाचन है। उदीरणा अनुदीर्ण कर्मों की होती है। भगवती में उदीरणा के स्वरूप का निर्देश करते हुए कहा गया है-जीव अपने उत्थान, बल, वीर्य, कर्म, पुरुषार्थ और पराक्रम के द्वारा अनुदीर्ण किन्तु उदीरणा के प्रायोग्य कर्मों की उदीरणा करता है।111 सूत्रकार ने 'उदीरणा-प्रायोग्य' विशेषण का प्रयोग किया है, यह महत्त्वपूर्ण है। जिन कर्म पुद्गलों की उदीरणा सुदूर भविष्य में होने वाली है अथवा जिनकी उदीरणा होगी ही नहीं। ऐसे कर्म-पुद्गलों को उदीरणा के अयोग्य माना है। उपशम, निधत्ति और निकाचना- ये तीन करण उदीरणा के अयोग्य होते हैं। जिस प्रकार डाली पर लगा हुआ फल सहज भाव से भी पकता है और अन्य उपायों से भी पकता है, उसी प्रकार कर्मों का परिपाक भी सहज और प्रयत्नपूर्वक दोनों रूप में होता है। सहज पकनेवाला दीर्घकाल सापेक्ष है। प्रयत्न से पकने वाला फल अल्पकाल में निष्पन्न हो जाता है। उदीरणा प्रयत्न से पकने वाले फल के समान है। उदीरणा पुरूषार्थवाद अथवा कर्म-परिवर्तन का समर्थक सिद्धांत है। पुरुषार्थवाद और कर्म परिवर्तन का सिद्धान्त ही क्रियावाद है। आचारांग के अनुसार आत्मा है से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई किरियावाई' अर्थात् आत्मा है, भव भ्रमण का स्थान लोक है, भवभ्रमण का कारण कर्म है अर्थात् भ्रमण को मिटाने का उपाय क्रिया है, पुरुषार्थ है।111ख पंचसंग्रह में सहज उदय को संप्राप्ति उदय और उदीरणा पुरस्सर उदय को असंप्राप्ति उदय कहा गया है। 12 ___(5) उद्वर्तना- स्थिति और अनुभाग की वृद्धि को उद्वर्तना कहते हैं।।13 इसमें 210 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy