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________________ प्रदेश है। अखंड आकाश में प्रदेश-भेद की कल्पना करके अनन्त प्रदेश कहा है। उसी प्रकार सभी द्रव्यों में पृथक्-पृथक् प्रदेशों की गणनां का निर्देश किया है। उपचार से पुद्गल परमाणु भी प्रदेश नाम से अभिहित है। इस प्रकार कर्मों के देशों का जीव के प्रदेशों का परस्पर मिलना प्रदेश बंध है। י जीव के भावों की विचित्रता के अनुसार कर्म की भी फल देने की शक्ति विचित्र प्रकार की होती है। गंधक, शोरा, तेजाब आदि के मिलने पर रासायनिक प्रक्रिया प्रारंभ होती है तथा तत्त्व विशेष की उपलब्धि होती है। उसी प्रकार कर्मों का जीव के साथ संयोग होने पर रासायनिक क्रिया प्रारंभ होती है। उससे अनेक प्रकार की विचित्रताएं जीव में दिखाई देती हैं। कर्मफल- संविभाग प्रश्न होता है कि क्या व्यक्ति अपने शुभाशुभ कर्म का फल दूसरों को दे सकता है? अथवा दूसरों के कर्मों का फल उसे प्राप्त हो सकता है ? कर्मफल का आदान-प्रदान संभव है या नहीं ? कर्मफल संविभाग के संदर्भ में जैन, बौद्ध और वैदिक विचार धाराएं भिन्न हैं । वैदिक धर्म के अनुसार व्यक्ति के शुभाशुभ कर्म का फल उसके पूर्वज या पुत्रों को मिल जाता है। कर्मफल का संविभाग संभव है।" संभवत: यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण की मान्यता इस आधार पर ही विकसित हुई हैं। इसके विपरीत, बौद्ध दर्शन में कर्मफल संविभाग में दूसरा संभागी बन सकता है किन्तु केवल शुभ कर्मों में ही । पाप का फल स्वयं कर्ता को ही भोगना पड़ता है। 100 (क) दृष्टिकोण से शुभाशुभ कर्मों का संविभाग नहीं हो सकता है। कर्म और उसके फल का संबंध कर्ता के साथ होता है। 100(ख) भगवती के आधार पर भी आत्मा स्वकृत सुख-दुःख का भोग करता है, परकृत सुख-दुःख का भोग नहीं करता । 101 दूसरा व्यक्ति निमित्त हो सकता है। निमित्त की दृष्टि से यहां परकृत कहा जा सकता है किन्तु सिद्धांत का आधार निमित्त नहीं, उपादान होता है। कर्म की अवस्थाएं कर्म परिवर्तन के इस सिद्धांत को समझने के लिये हमें कर्म की विभिन्न अवस्थाओं पर विचार करना होगा। जैन दर्शन में कर्म की दस अवस्थाएं मानी गई है। कर्मबंध और अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया 208
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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