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________________ भगवान महावीर ने एक साथ दो आयुष्य के बंध का सिद्धांत अस्वीकार किया है। उनके मत में आयुष्य एक जन्म से संबंधित होता है। पूर्वजन्म में आयु-बंध होता है और वह केवल उत्तरवर्ती एक ही जन्म का होता है। वृत्तिकार ने इसकी पुष्टि में तर्क प्रस्तुत किया है कि एक अध्यवसाय से दो विरोधी आयुष्य का बंध नहीं हो सकता। इसलिये एक समय में एक ही आयुष्य का बंध युक्ति संगत है।66 द्वैक्रियावाद के मत से एक समय में सम्यक् और मिथ्या दो क्रियाएं होती हैं। उस सिद्धांत के आधार पर एक साथ दो आयुष्य बंध होने में विरोध नहीं आता। अतः संभव है दो आयुष्य बंध की पृष्ठभूमि में वैक्रियावाद का सिद्धांत रहा हो। आगम युग में कर्म-सिद्धांत बहुचर्चित रहा है। आयु का सम्बन्ध कर्म के साथ है। एक जन्म में अनेक आयुष्य का विपाक या संवेदन होता है। इस सिद्धांत का आधार हैमत्स्यजाल ग्रन्थिका। जीवों के हजारों आयुष्य मत्स्य-जाल की गांठों की तरह परस्पर गूंथे रहते हैं। व्यास भाष्य में भी मत्स्यजाल ग्रन्थिका का दृष्टान्त मिलता है।67 जैन दर्शन के अनुसार एक जन्म में एक आयुष्य का संवेदन होता है। यदि सब आयुष्यों का संवेदन एक साथ हो तो एक जन्म में अनेक जन्मों के संवेदन का प्रसंग आयेगा। जाल-ग्रंथिका की व्याख्या भी जैन दर्शन ने भिन्न प्रकार से की है। जालग्रंथिका एक श्रृंखला (सांकल) है। प्रत्येक कड़ी परस्पर प्रतिबद्ध है। उसी प्रकार आयुष्य की श्रृंखला है। प्रत्येक जीव के वर्तमान आयुष्य से पूर्व हजारों आयुष्य बीत चुके हैं। वर्तमान जन्म केवल वर्तमान आयुष्य से ही सम्पादित होता है।69 __ आयुष्य की क्रम श्रृंखला का प्रतिपादन भगवती में है। कोई भी संसारी जीव आयुष्य के बिना एक क्षण भी जी नहीं सकता। मृत्यु के पश्चात् और दूसरे जन्म से पूर्व का मध्यवर्ती क्षण अन्तराल गति का क्षण है। उसमें केवल तैजस-कार्मण-ये दो सूक्ष्म शरीर ही रहते हैं। स्थूल शरीर नहीं रहता। शरीर के अभाव में इन्द्रियों का अस्तित्व भी नहीं रहता। इसलिये उस समय जीव स्थूल शरीर की दृष्टि से अशरीरी एवं अनिन्द्रिय होता है? किन्तु निरायु नहीं होता। क्रिया और पुनर्जन्म 199
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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