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________________ कर्म उदय की एक विशेष व्यवस्था है। सभी कर्म पुद्गलों का एक साथ उदय नहीं होता। एक साथ उदय हो जाये तो दूसरा क्षण कर्म विपाक से शून्य हो जायेगा, स्थिति बंध की भी व्यर्थता सिद्ध होगी। कर्म के उदय की प्राकृतिक व्यवस्था यह है कि फल देने वाले पुद्गलों के निषेक बन जाते हैं। निषेक प्रतिक्षण अनुभव में आने योग्य कर्म पुद्गलों की विशिष्ट रचना होती है।54 विपाक की पूर्ववर्ती अवस्था में निषेक की द्रव्यराशि अधिक होती है, उत्तर अवस्था में कम हो जाती है। कर्म स्थिति समाप्त होने तक निषेकव्यवस्था सक्रिय रहती है। आयुष्य गति, स्थिति, जाति, अवगाहना, प्रदेश और अनुभाग इन छह प्रकारों में जाति, गति-ये दो नामकर्म की प्रकृतियां हैं। अवगाहना का नाम उत्तर प्रकृतियों में नहीं आता। यद्यपि स्थिति, प्रदेश, अनुभाग का भी नाम-कर्म की उत्तर प्रकृतियों में उल्लेख नहीं है किन्तु नाम-कर्म की निर्दिष्ट उत्तर प्रकृतियों के अतिरिक्त अन्य अनेक उत्तर प्रकृतियां हो सकती हैं। इसी कारण इन सबको नामकर्म के अन्तर्गत मान लिया गया है। आयुष्य का बंध अज्ञात अवस्था में होता है। इसका बंध कब होता है, उसकी अवगति नहीं होती। आयुष्य के विषय में कुछ नियमों का निर्देश अवश्य प्राप्त है1. परलोक में जाने वाला जीव आयुष्य का बंध करके जाता है।58 2. आयुष्य का बंध वर्तमान जन्म में होता है।59 3. जीव को जिस योनि में जाना है, उसी से संबद्ध आयुष्य का बंध करता है।60 4. एक जीव एक समय या जन्म में एक आयुष्य का संवेदन करता है।61 5. आयुष्य बंध के साथ जाति आदि छह विषयों का निर्धारण होता है। 62 दो आयुष्य बंध का विमर्श भगवती सूत्र में एक जन्म में एक साथ दो आयुष्य बंध की चर्चा है63(क) इहभविक और परभविक। इहभविक का अर्थ है -वर्तमान भव की आयु और परभविक अर्थात् अगले भव की आयु। दो आयुष्य के संवेदन की चर्चा भी उसी से जुड़ी है।63(ख) आजीवक दर्शन64 और पातञ्जल योग भाष्य में इस विचार धारा के बीज देखे जा सकते हैं। योग भाष्यकार ने कर्माशय को एहभविक बतलाया है।65 198 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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