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________________ 27. साधारण शरीर नाम कर्म- इसके उदय से जीवों को एक शरीर मिलता हैं। 28. प्रत्येक शरीर नाम कर्म- इसके उदय से प्रत्येक जीव को अपना स्वतंत्र शरीर मिलता हैं। 29. स्थिर नाम- इसके उदय से शरीर के अवयव स्थिर होते हैं 30. अस्थिर नाम- इसके उदय से शरीर के अवयव अस्थिर होते हैं। 31. शुभ नाम- इसके उदय से नाभि के ऊपर के अवयव शुभ होते हैं। 32. अशुभ नाम- इसके उदय से नाभि के नीचे के अवयव अशुभ होते हैं। 33. सुभग नाम-इसके उदय से किसी प्रकार का उपकार किये बिना व सम्बन्ध के बिना भी जीव दूसरों को प्रिय लगते हैं। 34. दुर्भग नाम- इसके उदय से उपकारक व सम्बन्धी भी अप्रिय लगते हैं। 35. सुस्वर नाम- इसके उदय से जीव का स्वर प्रीतिकारक होता हैं। 36. दुःस्वर नाम- इसके उदय से जीव का स्वर अप्रीतिकारक होता हैं। 37. आदेय नाम- इसके उदय से जीव का वचन युक्तिपूर्ण न होते हुए भी मान्य होता हैं। 38. अनादेय नाम- इसके उदय से जीव का वचन युक्तिपूर्ण होते हुए भी अमान्य होता हैं। 39. यश कीर्ति नाम- यश और कीर्ति के हेतुभूत कर्म पुद्गल। 40. अयश कीर्ति नाम- अयश और अकीर्ति के हेतुभूत कर्म - पुद्गल। 41. निर्माण नाम- अवयवों के व्यवस्थित निर्माण के हेतुभूत कर्म पुद्गल। 42. तीर्थंकर नाम- तीर्थंकर - पद की प्राप्ति का निमित्तभूत कर्म। तीर्थंकरत्व - पद की प्राप्ति के हेतुभूत अरिहन्त की आराधना, सिद्ध की आराधना आदि बीस कारण हैं। प्रज्ञापना व गोम्मटसार2 में नाम कर्म के 93 भेदों का कथन किया गया है और कर्म - विपाक में बंधन नाम कर्म के पन्द्रह भेद मानकर नाम कर्म की हेतुभूत 103 क्रियाएं निर्दिष्ट हैं।3। जैनागमों के अनुसार शुभ नामकर्म बन्ध की हेतुभूत क्रियाएं चार हैं। 1. कायिक ऋजुता- दूसरों को ठगने वाली शारीरिक चेष्टा न करना। 2. भाव ऋजुता- दूसरों को ठगनेवाली मानसिक चेष्टा न करना। 3. भाषा ऋजुता- दूसरों को ठगनेवाली वाचिक चेष्टा न करना। क्रिया और कर्म - सिद्धांत 169
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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