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________________ आयुकर्म को भोगने के हेतुभूत चार क्रियाएं 1. नरकायु- नरक गति में टिके रहने के निमित्त कर्म - पुद्गल की क्रियाएं । 2. तिर्यञ्चायु - तिर्यञ्च गति में टिके रहने के निमित्त कर्म - पुद्गल की क्रियाएं। 3. मनुष्यायु- मनुष्य गति में टिके रहने के निमित्त कर्म - पुद्गल की क्रियाएं। 4. देवायु - देव - गति में टिके रहने के निमित्त कर्म - पुद्गल की क्रियाएं। आयु बंध की हेतुभूत क्रियाओं का विवेचन चतुर्थ अध्याय में द्रष्टव्य है। 6. नामकर्म जीवन यापन के लिए काम में आने वाली विविध सामग्री की उपलब्धि के हेतुभूत कर्म - पुद्गल को नामकर्म कहते हैं।" इस कर्म की तुलना चित्रकार से की जाती है। चित्रकार अपनी कल्पना से नाना प्रकार के चित्र बनाता है वैसे ही नाम कर्म नारक, तिर्यञ्श्च, मानव और देव योनि के अनुकूल शरीर अंगोपांग, इन्द्रिय, यश - अपयश आदि प्राप्ति का हेतु है। 7 नाम कर्म के दो प्रकार हैं- ( 1 ) शुभ नामकर्म और (2) अशुभ नामकर्म । " इनके उत्तर भेद बयालीस हैं। उनका विवेचन निम्नानुसार हैं. 1. गतिनाम - जन्म सम्बन्धी विविधता का निमित्त कर्म । (i) नरक गतिनाम (iii) मनुष्य गति - नाम 2. जाति नाम कर्म - इन्द्रिय रचना के निमित्त कर्म पुद्गल। इसके पांच उपभेद हैं (i) एकेन्द्रिय जातिनाम (iii) त्रीन्द्रिय जातिनाम (ii) द्वीन्द्रिय जातिनाम (iv) चतुरिन्द्रिय जातिनाम (v) पंचेन्द्रिय जातिनाम (ii) तिर्यञ्च गति - नाम (iv) देवगति - नाम 3. शरीर नाम - औदारिक आदि शरीर का निर्माण करने वाला कर्म (i) औदारिक शरीर नाम (ii) वैक्रिय शरीर - नाम (iv) तैजस शरीर - नाम (iii) आहारक शरीर - नाम (v) कार्मण शरीर - नाम - 4. शरीर - अंगोपांग नाम - शरीर के अंग-प्रत्यंगों के निमित्तभूत कर्म क्रिया और कर्म - सिद्धांत (i) औदारिक शरीर अंगोपांग नाम (ii) वैक्रिय शरीर अंगोपांग नाम (iii) आहारक शरीर अंगोपांग नाम - पुद्गल । 165
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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