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________________ मुक्त नहीं हो जाती तब तक बाह्य परिस्थितियों और वातावरण से अप्रभावित नहीं रह सकती। संबंध का हेतु क्रिया दूसरा अहं प्रश्न यह है कि आत्मा चेतन है, कर्म जड़। आत्मा अविनश्वर है, कर्म नश्वर। दोनों विरोधी स्वभाव वाले हैं। व्यवहार जगत में दो विरोधी साथ नहीं रह सकते। फिर इनका संयोग कैसे हुआ ? कौन-सा ऐसा तत्त्व है जो सेतु का कार्य करता है? आचारांग में इस प्रश्न का उत्तर क्रियावाद की स्वीकृति के आधार पर दिया गया है। आत्मा में राग-द्वेष और मोह के स्पन्दन हैं। उन प्रकम्पनों के द्वारा कर्म पुद्गल आकृष्ट होकर आत्मा के साथ संबंध स्थापित करते हैं। कर्म पुद्गलों के प्रभाव से आत्मा में रागद्वेषादि उत्पन्न या वृद्धिगत होते हैं। इस प्रकार क्रिया से कर्म और कर्म से क्रिया का चक्र अनवरत गतिशील रहता है। आत्मा और कर्म वर्गणाओं का संबंध स्वीकार करने पर प्रश्न होता है कि आत्मा अनादिकाल से बंधनग्रस्त है तो जो बंधन अनादि है वह अनंत भी होना चाहिए। ऐसी स्थिति में मुक्ति की संभावना निर्मूल हो जाती है। कर्मबंध और रागादि भाव का चक्र अनादिकाल से चल रहा है तो अनन्त काल तक चलता रहेगा। इस समस्या के समाधान में भी अनेकांत दृष्टि का अवलम्बन लिया है। उसके अनुसार जैन दार्शनिकों ने अनादि की अनंतता के साथ कोई व्याप्ति नहीं है। अनादि होते हुए भी सांतता की उपलब्धि होती है। दूसरा जीव और कर्म का संबंध प्रवाह रूप से अनादि है। व्यक्ति विशेष की अपेक्षा से सादि सांत ही है। प्रत्येक कर्म की अपनी अवधि है, निश्चित काल- मर्यादा है। यदि नवीन कर्मस्रोत को रोक दिया जाएं तो कर्मफल और बंध की परंपरा स्वत: समाप्त हो जाती है। ___कर्म वर्गणाएं समस्त लोक में व्याप्त हैं। मुक्ति-क्षेत्र में भी उनका अस्तित्व है। इस स्थिति में प्रश्न स्वाभाविक है कि कर्म वर्गणा मुक्त आत्माओं को प्रभावित किए बिना कैसे रहती है ? इस संदर्भ में जैनाचार्यों का अभिमत है कि कर्म-पुद्गल उसी आत्मा को प्रभावित करते हैं जो राग-द्वेष से युक्त है। कीचड़ में लोहा जंग खाता है, स्वर्ण नहीं। मुक्त आत्माओं में राग द्वेषादि क्रिया का अभाव है अत: उन्हें कर्म वर्गणा के पुद्गल प्रभावित करने में सक्षम नहीं हैं। क्रिया और कर्म - सिद्धांत 159
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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