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________________ अस्तित्त्व का स्वीकार है। न केवल अस्तित्व का स्वीकार अपितु वे एक दूसरे को प्रभावित करते हैं, इस तथ्य की स्वीकृति भी है। यही कारण है कि भारतीय आस्तिक दर्शनों ने एक ऐसे तत्त्व की सत्ता को स्वीकार किया है जैन-दर्शन उसी तत्त्व को कर्म की संज्ञा देता है। अन्य दर्शन उसे माया, अविद्या, प्रकृति4, अपूर्व, अदृष्टा, वासना", कर्माशय, दैव, भाग्य, संस्कार आदि रूपों में स्वीकार करते हैं। इनमें नामभेद होने पर भी तात्पर्यार्थ में कोई अन्तर नजर नहीं आता हैं। वैदिक दर्शनों में कर्म - सिद्धांत की व्याख्या इतनी स्पष्ट नहीं हैं जितनी जैन एवं बौद्ध दर्शन में। आत्मा और कर्म की पारस्परिक प्रभावकता भारत में दो प्रकार की विचारधाराएं है-अद्वैतवादी और द्वैतवादी। अद्वैतवादी के समक्ष जड़-चेतन के संबंध की कोई समस्या नहीं है। यह समस्या उन विचार धाराओं के लिए हैं जो द्वैतवादी हैं। पाश्चात्य जगत् में भी यह समस्या देकार्त के समय से प्रारंभ होती है क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम जड़ और चेतन की स्वतंत्र सत्ता मानी थी। उसने इसका समाधान पारस्परिक प्रतिक्रियावाद के आधार पर किया। देकार्त के विरोध में स्पिनोजा ने प्रश्न खड़ा किया कि जब जड़ और चेतन दोनों स्वतंत्र हैं तो उनमें परस्पर प्रतिक्रिया कैसे संभव हो सकती है ? उसने प्रतिक्रियावाद के स्थान पर समानांतरवाद का सिद्धांत दिया। लाइबनीत्ज ने पूर्व-स्थापित सामञ्जस्यवाद की अवधारणा प्रस्तुत की। भारतीय चिंतन में प्राचीनकाल से ही आत्मा और जड़ की स्वतंत्र सत्ता मान्य रही है। इसी कारण प्रारंभ से ही यह प्रश्न उठता रहा है कि आत्मा अमूर्त है, कर्म मूर्त है। फिर इनका संबंध कैसे ? सांख्य दर्शन में पुरूष और प्रकृति को यद्यपि भिन्न माना है फिर भी दोनों के संबंध स्पष्ट नहीं है क्योंकि उनमें पुरुष को कूटस्थ नित्य माना गया है। जैन दार्शनिक अनेकान्तवादी हैं। मदिरा, क्लोरोफार्म आदि का चेतना पर प्रभाव दृष्टिगोचर होता है तब मूर्त कर्म के चेतना पर प्रभाव में हमें संदेह क्यों ? दूसरा उन्होंने आत्मा को एकान्ततः मूर्त और निष्क्रिय नहीं माना है। कर्म के संबंध से आत्मा कथंचित् मूर्त भी है। स्वरूपतः अमूर्त होते हुए भी कर्मबद्ध होने से सशरीरी है। मूर्त को मूर्त प्रभावित कर सकता है। इस दृष्टि से आत्मा पर मूर्त कर्म का उपघात, अनुग्रह और प्रभाव तर्क सिद्ध है। निष्कर्ष यह है कि सर्वथा अमूर्त आत्मा पर कर्म-सिद्धांत लागू नहीं होता। शरीर भौतिक है, आत्मा अभौतिक। दोनों में पारस्परिक संबंध है। जब तक आत्मा शरीर से 158 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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