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________________ अवरुद्ध सा हो गया। आधुनिक युग में मनोविज्ञान, रंग-विज्ञान, रंग-चिकित्सा आदि ज्ञान की नई विधाओं के विकास के साथ जैन दर्शन का लेश्या सिद्धांत आचार्य महाप्रज्ञ जैसे मनीषियों के द्वारा पुनः प्रकाश में आ रहा है। लेश्या एक पौद्गलिक पर्यावरण है। जीव को प्रभावित करने वाले अनेक पुद्गल समूह हैं, उनमें एक समूह का नाम है- लेश्या। विभिन्न ग्रन्थों में विभिन्न परिभाषाएं उपलब्ध हैं। पंचसंग्रह धवला : गोम्मटसार आदि में इसे पारिभाषित करते हुए कहा गया है कि जीव जिसके द्वारा अपने को पुण्य - पाप से लिप्त करता है, वह लेश्या है। तत्त्वार्थ वार्तिक 10 और पंचास्तिकाय 11 के अनुसार कषायोदय से अनुरंजित योगों की प्रवृत्ति लेश्या है। स्थानांग की अभयदेवकृत वृत्ति 12 ध्यानशतक 13 आदि ग्रंथों के अनुसार, जिसके द्वारा प्राणी कर्म से संश्लिष्ट होता है, उसका नाम लेश्या है। मूलाराधना में शिवार्य के शब्दों में- लेश्या छाया पुद्गलों से प्रभावित होने वाले जीव परिणाम हैं।14 उत्तराध्ययन की वृहत्वृत्ति में लेश्या का अर्थ आणविक आभा, कान्ति, प्रभा, छाया किया है। 15 लेश्या की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर मुख्य रूप से तीन तथ्य सामने आते हैं(1) योग परिणाम लेश्या - उत्तराध्ययन की टीका में यह मत उल्लिखित __ है। 16 (2) कर्म वर्गणा निष्पन्न लेश्या – यह धारणा वादिवेताल सूरि की है। उत्तराध्ययन के टीकाकार शांतिसूरि भी इसके पक्षधर हैं। (3) कर्म निस्यन्द लेश्या - यह मत हरिभद्र का है। 17 योग परिणाम लेश्या आचार्य हरिभद्र ने लेश्या और योग में अन्वय-व्यतिरेक सम्बन्ध माना है। दोनों में साहचर्य सम्बन्ध होने पर भी लेश्या योग-वर्गणा के अन्तर्गत नहीं हैं क्योंकि इनमें स्वरूपगत भिन्नता है। काययोग का सम्बन्ध शरीर की क्रिया से है, वचनयोग का वाणी से, मनोयोग का चिन्तन से, जबकि लेश्या का सम्बन्ध भावधारा से है। चिन्तन और भावधारा भिन्न है। कर्म शरीर का स्थूल परिणमन मन, वचन और काया की प्रवृत्ति 126 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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