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________________ 206. वही; 2 / 187 की टीका नास्त्यन्तरं - व्यवधानं यस्याः साऽनन्तरा सा चासौ समुदान क्रिया चेति विग्रहः, प्रथमसमयवर्तिनीत्यर्थः द्वितीयादी समयवर्तिनी तु परम्पर समुदान क्रियति, प्रथमाप्रथमसमयापेक्षया तु तदुभयासमुदान क्रियति । 207. भगवई; 1,1/444 टीका पृ. 193 "इरियावहियं' ति ईर्ष्या - गमनं तद्विषयः पन्था:- मार्ग ईर्यापथस्तत्र भवा ऐर्यापथिकी, केवल काययोग प्रत्ययः कर्मबंध इत्यर्थ: । 208. तत्त्वार्थसूत्र, भाष्य वृत्ति; 6/5 (ख) ओघनिर्युक्ति, 747 209. ओघनियुक्ति ; पृ. 499 210. भगवती भाष्य; 7 / 125 211. वही; 7/126 जस्स णं कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिण्णा भवंति, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोह- माण- माया लोभा अवोच्छिण्णा भवति, तस्स ण संपराइया किरिया कज्जइ । 212. भगवती जोड; 121 /8 213. पातंजल योग दर्शन; 2/4 214. (क) भगवती वृत्ति; 6/292 (ख) वही ; 1 / 444 (ग) वही; 3 / 144 15. भगवई; 3/148 216. दीर्घनिकाय पृ.191 17. भगवई भाष्य; 7/74-75 218. भगवती वृत्ति; 7/75 उदय प्राप्तं कर्म वेदना धर्म धर्म्मिणोरभेद विवक्षणात् । 219. भगवती वृत्ति; 7/75, वेदित रसं कर्म नो कर्म । 220. भगवती; 3/148 221. वही; 7/125-126 22. भगवती; 10/13-14 223. भगवती; 18/156-160 224. उत्तराध्ययन; 26/72 क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप - 121
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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