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________________ ही वह कार्य पूर्णता को, सम्पन्नता को प्राप्त न भी हुआ हो, चूंकि वह आंशिकरूप से हो चुका है, होता जा रहा (क्रियमाण) है, वह ‘कृत' कहा जाता है। यह निरूपण 'निश्चय नय' (या ऋजुसूत्रनय) के अनुसार माना जाता है। इस नय में क्रियाकाल व निष्ठाकाल अभिन्न होते हैं। इसी तरह अजितकेशकम्बली द्वारा प्रवर्तित ‘उच्छेदवाद' के अनुसार दान आदि सत्क्रियाएं निष्फल, निस्सार हैं क्योंकि मृत्यु के बाद सब उच्छिन्न हो जाता है। इसी संदर्भ में अश्वमित्र का सामुच्छेदिकवाद' भी उल्लेखनीय है, जिसके अनुसार, उत्पत्तिक्रिया के तुरन्त बाद वस्तु नष्ट हो जाती है। आचार्य पूरणकाश्यप के अक्रियावाद के अनुसार किसी भी क्रिया से कर्मबन्ध आदि नहीं होता। इसी क्रम में आ. गंग का 'द्वैक्रियवाद' था जो भगवान महावीर के ‘एक समय में एक ही उपयोग परिणति-क्रिया' की मान्यता के विपरीत था। जैन दर्शन में नयवाद, अनेकान्तवाद व स्यावाद को विशिष्ट स्थान प्राप्त है- यह दर्शन का विद्यार्थी जानता है। इन नयों में ज्ञाननय व क्रियानय का विशिष्ट निरूपण प्राप्त होता है। समयसार के टीकाकार आचार्य अमृतचन्द्र ने एकान्त ज्ञाननय व एकान्त क्रियानय का निराकरण कर इन दोनों की परस्पर अपेक्षा या मैत्री स्थापित कर, ज्ञान व क्रिया-दोनों को महत्त्व देते हुए साधना करने की प्रेरणा दी है।37 इसी संदर्भ में क्रियारुचि (सम्यक्त्व) का निर्देश भी प्रासंगिक है। ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, समिति-गुप्ति के पालन में जिसकी भावपूर्वक रुचि हो, वह 'क्रियारुचि' है।38 नयों में एवम्भूतनय' के अनुसार समस्त वस्तु 'क्रियात्मक' है।39 ___ कुछ स्थलों में क्रिया' शब्द 'जीवाजीवादि पदार्थ-ज्ञान एवं छन्द, अलंकार आदि के वाचक रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। समस्त कलाओं (पुरुषों की 72 कलाओं, स्त्रियों की 64 कलाओं) तथा काव्य-कला आदि का भी यह शब्द वाचक है और 'क्रियाविशाल' नामक 'पूर्व' में इनका निरूपण था- ऐसी मान्यता है।41 जैन दर्शन और अर्थ क्रिया 'अर्थक्रिया' एक दार्शनिक पारिभाषिक शब्द है। इसके सम्बन्ध में भी जैन दार्शनिकों ने सूक्ष्म व मौलिक विचारणा प्रस्तुत की है जिसका सार यहां प्रस्तुत करना प्रासंगिक होगा। सामान्यत: ‘क्रिया' को चेष्टा का पर्याय माना जाता है। कहा भी है
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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